Saturday 31 October 2015

इस तरह परीक्षा करवाने पर शर्म आनी चाहिए राजस्थान लोकसेवा आयोग को



राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अथवा राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष ललित के. पंवार की बेटी किसी परीक्षा केन्द्र पर पहुंचे और वहां खड़ा पुलिस का एक सिपाही बदतमीजी के साथ कहे कि अपना कुर्ता उतार कर आ अथवा हाथ बांह का कुर्ता पहन। इसी वक्त उस बेटी की आंखों में आंसू हो तो बताएं वसुंधरा राजे और ललित के. पंवार को कैसा लगेगा? कुछ इसी बदतमीजी और बिगड़े माहौल में 31 अक्टूबर को राजस्थान भर में आरएएस प्री 2013 की परीक्षा सम्पन्न हुई। राजे और पंवार अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने परीक्षा को अंजाम दे दिया। लेकिन परीक्षा केन्द्रों पर बेटियों और बेटों को जिस प्रकार अपमानित होना पड़ा उसमें इन दोनों को ही शर्म आनी चाहिए। इतना ही नहीं बेटियों की चुन्नी अथवा सर्दी के मौसम में पहनी गई जाकेट को भी बेशर्मी के साथ उतरवा दिया गया। समझ में नहीं आता कि जो सीएम सार्वजनिक समारोह में लोगों द्वारा दी गई ओढऩी, चुनरी को शर्म और सम्मान का प्रतीक मानती हैं उसी सीएम के राज में प्रदेश भर में बेटियों की चुन्नियां - चुनरी उतरवा दी गई। सीएम राजे बताएं कि जब परीक्षा केन्द्रों पर बेटियों की चुन्नियां उतरवाई जा रही है तो फिर वे क्यों समारोह में चुनरी ओढ़ती हैं? आयोग ने नकल रोकने के लिए परीक्षा केन्द्रों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए। होना तो यह चाहिए था कि परीक्षा केन्द्र के अन्दर ऐसी व्यवस्था की जाती कि अभ्यर्थी किसी भी साधन से नकल नहीं कर सके। लेकिन इसके बजाए आयोग ने यह मान लिया कि सभी अभ्यर्थी नकल करते हैं। इसलिए ऐसे प्रतिबंध लगा दिए गए जिससे राजस्थान के स्वाभिमानी युवाओं को सरेआम अपमानित होना पड़ा। मुझे पता है कि आयोग के अध्यक्ष सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए मैं अजमेर शहर के एक परीक्षा केन्द्र का सबूत सहित उदाहरण दे रहा हूं और यही हालात प्रदेशभर के परीक्षा केन्द्रों के रहे हैं। आयोग ने अजमेर शहर के हरिसुन्दर बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय को परीक्षा केन्द्र बनाया। अभ्यर्थियों को जो प्रवेश पत्र भेजे गए उसमें इस विद्यालय का पता नवाब का बेड़ा लिखा। जबकि यह विद्यालय नवाब का बेड़ा से 2 वर्ष पहले ही स्थानान्तरित होकर आशागंज क्षेत्र में चला गया। 31 अक्टूबर को सुबह सैंकड़ो अभ्यर्थी इस विद्यालय को नवाब का बेड़ा में ढूंढते रहे। इस विद्यालय का टेलीफोन नंबर 2431369 अंकित किया गया जबकि विद्यालय का सही नंबर 2431359 है। प्रवेश पत्र पर छपे फोन नंबर पर जब अभ्यर्थियों ने सम्पर्क किया तो पता चला कि यह अजमेर की जिला परिषद के कार्यालय का नंबर है। इस विद्यालय में पार्किंग की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। स्कूल के संवेदनहीन शिक्षकों और कर्मचारियों ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि पार्किंग हमारी जिम्मेदारी नहीं है। इस केन्द्र पर तैनात पुलिस के दीवान डूंगाराम का स्वयं कहना था कि यह विद्यालय मुझे भी बड़ी मुश्किल से मिल पाया है। जब ड्यूटी देने वाले दीवान की यह पीड़ा थी तो अभ्यर्थियों की परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। आयोग के प्रवेश पत्र पर यह अंकित किया गया था कि अभ्यर्थियों को प्रात: 9 बजे परीक्षा केन्द्र पर पहुंचना है ताकि अभ्यर्थियों के आई कार्ड, प्रवेश पत्र और ड्रेस कोड की जांच पड़ताल हो सके। लेकिन इसे आयोग और परीक्षा केन्द्र में तालमेल का अभाव ही कहा जाएगा कि विद्यालय के शिक्षकों ने कहा कि हमारे पास आयोग के जो दिशा-निर्देश प्राप्त हुए हैं उसमें प्रात: 9.30 बजे अभ्यर्थियों को प्रवेश देने की बात लिखी गई है। यही वजह रही कि अभ्यर्थियों को बेवजह आधा घंटा परीक्षा केन्द्र के बाहर ही खड़ा रहना पड़ा। इन अक्ल के अंधों से कोई यह पूछे कि जब परीक्षा 10 बजे शुरू होनी है तो फिर मात्र आधा घंटे में ढाई सौ अभ्यर्थियों के आई कार्ड, प्रवेश पत्र और ड्रेस कोड की जांच कैसे की जा सकती है? इस विद्यालय पर 250 अभ्यर्थी निर्धारित किए गए हैं। विद्यालय के शिक्षकों ने एक-एक अभ्यर्थी की जांच करवाई है। जिन परीक्षा केन्द्रों पर अधिक अभ्यर्थी थे उनको तो और भी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। मैं खुद हरिसुन्दर बालिका विद्यालय के बाहर बेटे-बेटियों की परेशानी को देख रहा था। मुझे तब बहुत ही बुरा लगा जब विद्यालय के संवेदनहीन शिक्षकों और पुलिसकर्मियों ने उन अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया जो पूरी बांह की शर्ट और कुर्ते पहनकर आए थे। मैंने 26 अक्टूबर को ब्लॉग लिखा था जिसमें बेटियों के हाफ बांह के कुर्ते पर आपत्ति जताई थी। इस ब्लॉग के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे यह आश्वस्त किया कि आयोग के अध्यक्ष ललित के. पंवार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि महिला अभ्यर्थी पूरी बांह का कुर्ता पहनकर आ सकती है। लेकिन पंवार का यह कथन उस समय झूठा साबित हुआ जब हरिसुन्दर बालिका विद्यालय पर बेटियों को अपमानित कर बाहर चले जाने को कहा। पुरुष अभ्यर्थियों से भी कहा गया कि वे हाफ बांह की शर्ट पहनकर प्रवेश कर सकते हैं। मैंने जब बेटियों और बेटों की आंखों में आंसू देखे तो अजमेर में आरएएस प्री की परीक्षा के प्रभारी और डीएसओ सुरेश सिन्धी से फोन पर संवाद किया। इस पर सुरेश सिन्धी ने भी यह माना कि जो बेटियां और बेटे फुल बांह के कपड़े पहनकर आए हैं उन्हें परीक्षा में शामिल किया जाए। ज्यादा से ज्यादा कपड़े की बांह को उलटवाया सकता है। हो सकता है कि सुरेश सिन्धी ने अंधे, बहरे, गूंगे और संवेदनहीन राजस्थान लोक सेवा आयोग के अधिकारियों से सम्पर्क किया हो और बाद में यह निर्देश दिलवाए हों कि फुल बांह के परिधान पहने अभ्यर्थियों को भी परीक्षा देने ही जाए। यहां पर सवाल उठता है कि आखिर पहले बेटे-बेटियों को अपमानित क्यों किया गया। ऐसे निर्देश पहले ही दिए जा सकते थे। सिर्फ पूरी बांह के परिधान पर परीक्षा के शुरू में बेटे-बेटियों को जो मानसिक तनाव झेलना पड़ा उसके बाद किन हालातों में परीक्षा दी होगी इसका अंदाजा वसुंधरा राजे और ललित के. पंवार को लगाना चाहिए। सीएम की कुर्सी और आयोग के अध्यक्ष के पद पर बैठकर सिर्फ फरमान जारी करने से कुछ नहीं होगा। इन दोनों को प्रदेश के युवाओं की भावनाओं को समझना चाहिए। प्रदेश भर में 31 अक्टूबर को परीक्षा केन्द्रों पर जो हालात बिगड़े उसका जवाब राजे और पंवार को देना ही चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

1 comment:

  1. अंधेर नगरी चौपट राजा। आजकल यही हाल देश प्रदेश का हो रखा है। सरकार हर व्यवस्था की नाकामी नए अनर्गल नियम बनाकर पूरी करती है। परीक्षा में फ़ैल आयोग हुआ भुगत रहें हैं अभ्यर्थी। ये या इनमे से कोई आर ए एस बनकर अपनी नाकामी आगे जनता पर डालेगा।
    सफाई ठेकों में पैसे की बर्बादी भ्रस्टाचार आम है फिर शहर की सफाई नहीं होती तो जनता पर एक और बोझ डाल दो घर घर कचरा इकट्ठा करेंगे। वैसे ही जनता से ही झाड़ू लगवाई जा रही है और क्या चाहते हैं।
    सड़कों की हालात सही नहीं है दुर्घटना कम हों तो हेलमेट पुरे प्रदेश में लागू कर देंगे। पीछे बैठने वाले पर भी। वास्तव में व्यवहारिक कुछ हो न हो बस नियम बना दो अराजकता बढ़ने दो जनता वैसे ही जीती आई है जी लेगी।

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