Friday 11 September 2015

क्या पर्यूषण पर्व में आर.के.मार्बल के अशोक पाटनी अपने पूर्व सहयोगी पीरदान को माफ करने का साहस का दिखा सकते हैं।

एक समय था जब पीरदान सिंह राठौड़ ने अशोक पाटनी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आर.के.मार्बल संस्थान को चमकाने का काम किया। पाटनी की राजसमंद की खदानों से निकलने वाले मार्बल पत्थर को पीरदान ने अपने ट्रोलों में भरकर किशनगढ़ तक पहुंचाया। लेकिन जिस तेजी से आर.के.मार्बल का रथ दौड़ा, उस तेजी से पीरदान के ट्रोले दौड़ नहीं सके। पिछडऩे के कारण ही पाटनी और पीरदान की दोस्ती भी टूट गई। इसे तकदीर का खेल ही कहा जाएगा कि पीरदान के सारे ट्रोले बिक गए और अब पीरदान सड़क पर है। लेकिन पीरदान ने अपने स्वाभिमान का संघर्ष जारी रखा है। हो सकता है कि संघर्ष में पीरदान से गलतियां भी हुई हो, पीरदान को उन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था, जिसमें अशोक पाटनी की छवि खराब हुई। सब जानते हैं कि अशोक पाटनी धर्मप्रेमी हैं। पाटनी ने अपने समाज के जैन संत सुधासागर महाराज के एक इशारे पर नारेली तीर्थ के विकास में कई करोड़ रुपए खर्च कर दिए। अब भी जब कोई जैन संत खर्चे का काम बताते हैं। अशोक पाटनी तैयार रहते हैं। धर्म और सामाजिक क्षेत्र में दान करने में अशोक पाटनी कभी पीछे नहीं रहते। इन दिनों जैन समाज के पर्यूषण पर्व चल रहे हैं। इसमें समाज के लोग जाने अनजाने में हुई गलतियों का प्रायश्चित करते हैं।
मान्यता है कि पर्यूषण पर्व के दिनों में जैन समाज के लोगों को आत्मबल की प्राप्ति होती है। स्वाभाविक है कि इन दिनों अशोक पाटनी भी अपने जैन धर्म की मान्यता के अनुरूप आत्मबल प्राप्त कर रहे होंगे। क्या ऐसे माहौल में अशोक पाटनी अपने सहयोगी रहे पीरदान सिंह की गलतियों को माफ करने का साहस दिखा सकते हैं? जो व्यक्ति सड़क पर है, वह गलतियां करता ही है, लेकिन जो राजा की कुर्सी पर बैठा है, उसे सहनशील माना जाता है। जो पीरदान अपने तीस से भी ज्यादा ट्रोलों से अशोक पाटनी के मार्बल पत्थरों को ढोने का काम करता था, वहीं पीरदान इन दिनों भीषण गर्मी में कलेक्ट्रेट के फुटपाथ पर सत्याग्रह कर रहा है। पीरदान की दोनों पुत्रियों, पुत्रों और खुद पर भी पुलिस ने कई मुकदमें दर्ज कर लिए हैं। अशोक पाटनी और अजेमर के एसपी विकास कुमार भी जानते हैं कि सभी मुकदमे झूठे हैं। लेकिन पीरदान के राजपूती गुस्से की वजह से पीरदान की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पीरदान की खबर कोई छापे या नहीं लेकिन पीरदान अपने जिद्दी रवैये की वजह से कलेक्ट्रेट के बाहर सत्याग्रह कर रहा है। पीरदान को उम्मीद है कि एक दिन तो जुल्म ढहाने वालों को तरस आएगा ही। ऐसे स्वाभिमानी जिद्दी और खुद्दार पीरदान को 11 सितम्बर को मैंने भी अपना समर्थन दिया। मैं भी पीरदान के साथ कलेक्ट्रेट के बाहर फुटपाथ पर बैठा।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

1 comment:

  1. आपका विश्लेषण बिलकुल उचित है और आपके साथ मेरी भी यही अपेक्षा है कि पाटनी जी को मानवीय पहलू पर विचार कर साहस का परिचय देना चाहिए. परन्तु मेरा अनुभव इस बात को स्वीकार नहीं करता. पाटनी जी बड़े आदमी हैं पर भगवान नहीं हैं जो अपने भक्तों पर कृपा करते रहे.

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