Thursday 17 September 2015

जब संसद में ही कुछ नहीं हुआ तो विधानसभा में क्या होगा।

राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के इस्तीफे के मांग को लेकर कांग्रेस ने संसद का पूरा मानसून सत्र बरसात में बहा दिया,लेकिन राजे का कुछ भी नहीं हुआ। अब 16 सितम्बर से राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू हुआ है तो कांग्रेस के विधायक यहां भी हंगामा कर रहे हंै। 17 सितम्बर को हंगामे की वजह सत्र की कार्यवाही कई बार स्थगित करनी पड़ी। कांग्रेस ने राजे के खिलाफ संसद में ललित मोदी का जो मुद्दा उठाया था, वहीं मुद्दा विधानसभा में भी उठाया जा रहा है। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि जब संसद में ही कुछ नहीं हुआ तो फिर विधानसभा में क्या होगा। लोकसभा में तो अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने हंगामा करने वाले सांसदों के प्रति नरम रुख अपनाया। लेकिन विधानसभा में अध्यक्ष कैलाश मेघवाल नरम की बजाए सख्त रुख अपनाएंगे। ये वहीं कैलाश मेघवाल हैं, जिन्होंने भाजपा के पिछले शासन में वसुंधरा राजे पर 20 हजार करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगाया था। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में राजे के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति मेघवाल ही है। गत विधानसभा चुनाव में मेघवाल ने राजे के प्रति जो वफादारी दिखाई, उसी का परिणाम है कि मेघवाल आज विधानसभा के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे हैं। विधानसभा में कांग्रेस के विधायक हो-हल्ला करले, लेकिन मेघवाल राजे पर कोई आंच नहीं आने देंगे। यदि कांग्रेस के विधायक नहीं माने तो मेघवाल उन्हें मार्शल के जरिए विधानसभा से बाहर फिकवा देंगे।
मेघवाल ने पूर्व में जब 20 हजार करोड़ के घोटाले के आरोप राजे पर लगाए थे,तब गुलाबचंद कटारिया भी मेघवाल के साथ खड़े थे, लेकिन आज कटारिया भी राजे का खुलकर बचाव कर रहे हैं। कटारिया के बड़बोले पन से पूरा प्रदेश वाकिफ है। 17 सितम्बर को राजे के समर्थन में कटारिया ने अजीब सा तर्क दिया। विधानसभा में कांग्रेस कि विधायकों के हंगामा करने के जवाब में कटारिया ने कहा कि वसुंधरा राजे की सरकार ने ही वरिष्ठ आईएएस अशोक सिंघवी को गिरफ्तार किया है। ऐसे में राजे की भ्रष्टाचार मिशन की मुहिम की प्रशंसा होनी चाहिए, लेकिन कांग्रेसी बेमतलब के आरोप लगा रहे हैं। कटारिया के जवाब से यह सवाल उठता है कि क्या अशोक सिंघवी की गरिफ्तारी से ललित मोदी कांड दब जाएगा? सब जानते हैं कि क्रिकेट के भस्मासुर ललित मोदी से वसुंधरा राजे और उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह ने 11 करोड़ 23 लाख रुपए प्राप्त किए है। गंभीर बात यह है कि ललित मोदी ने मां-बेटे की कंपनी के शेयरों को खरीदा है। जिस शेयर की कीमत मात्र 10 रुपए थी, उस शेयर को 96 हजार रुपए पर खरीदा गया। अब प्रदेश के गृहमंत्री कटारिया इस मामले में वसुंधरा राजे को निर्दोश मानते हैं। यह माना कि कंपनी के शेयर के घालमेल में सभी नेताओं की मिली भगत है, इसलिए वसुंधरा राजे से भी नैतिकता की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस के नेताओं को तो ऐसे आरोप लगाने का कोई अधिकार ही नहीं है, क्योंकि रॉबर्ट वाडरा से लेकर सोनिया गांधी तक ने कंपनी के शेयरों की खरीद-फरोख्त का खेल खेला है।
23 किलो सोना बरामद
एसीबी ने 16 सितम्बर को 3 करोड़ रुपए की रिश्वत के मामले में उदयपुर स्थित खान निदेशालय के जिस अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत को गिरफ्तार किया था, उस गहलोत के बैंक लॉकरों की तलाशी ली गई तो 23 किलो सोना भी बरामद हुआ। अब तक इस मामले में कोई पांच करोड़ रुपए नकद बरामद किए जा चुके हैं। खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी की गिरफ्तारी के बाद सरकार में भी खलबली मच गई है। सवाल उठता है कि करोड़ों रुपए के घोटाले क्या अफसरशाही अपने स्तर पर कर रही थी? कोई भी अफसर रिश्वत तभी खा सकता है, जब उसे सत्ता में बैठे प्रभावशाली लोगों का संरक्षण मिले। सरकार के प्रतिनिधियों के संरक्षण के बिना प्रशासनिक अमला 1 रुपए की भी रिश्वत नहीं ले सकता। क्या वर्तमान दौर में ऐसे जनप्रतिनिधि है, जो अफसर को तो रिश्वत खाने दे और खुद एक रुपया भी न लें? जो गुलाबचंद कटारिया विधानसभा में खड़े होकर सीएम वसुंधरा राजे को ललित मोदी के मामले में निर्दोष बता रहे हैं, उन्हीं कटारिया के गृह नगर उदयपुर में खान निदेशालय है और इस निदेशालय में ही 20-20 करोड़ की रिश्वत ली जा रही है। कटारिया के गृह नगर की बैंकों के लॉकर ही भ्रष्ट अफसरों का सोना उगल रहे हैं। राजनीति में कटारिया को एक ईमानदार राजनेता माना जाता है, लेकिन अब कटारिया भी यह बताना होगा कि उनके गृह नगर के खान निदेशायल में भ्रष्ट अफसरों को किन राजनेताओं का संरक्षण है। जहां तक आईएएस अशोक सिंघवी का सवाल है तो एसीबी ने जो सबूत जमा किए, उसमें अशोक सिंघवी गिरफ्तार होते ही। यह सरकार की नहीं, एसीबी की सफलता है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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