Monday 14 September 2015

हिन्दू परिवार व्यवस्था में ही महिला सुरक्षित।

संघ प्रमुख भागवत ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में कहा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचार विभाग की ओर से 12 और 13 सितम्बर को जयपुर में अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में सोशल मीडिया पर ब्लॉग, पत्र पत्रिकाओं में कॉलम लिखने वालों और लेखकों को आमंत्रित किया गया। इस संगोष्ठी में एक ब्लॉगर के तौर पर मुझे भी शामिल होने का अवसर मिला। देश भर से कोई सवा सौ लोगों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया। संगोष्ठी की गंभीरता और उद्देश्य का पता इसी से चलता है कि दो दिन की इस संगोष्ठी में सभी सत्रों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत उपस्थित रहे। 13 सितम्बर को समापन सत्र से पहले भागवत ने संघ के कामकाज से लेकर आरक्षण के मुद्दे तक अपने विचार खुलकर रखे। मैं यहां सिलसिलेवार मोहन भागवत के विचारों को प्रस्तुत करुंगा। चूंकि संगोष्ठी का विषय महिलाओं पर था, इसलिए सबसे पहले महिलाओं पर ही भागवत व संघ के विचार रख रहा हंू।
भागवत ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में हम बालिका से लेकर महिला तक जिन समस्याओं को देख रहे हैं, उसका समाधान सिर्फ हिन्दू परिवार व्यवस्था में ही है। यदि हम हमारी सनातन संस्कृति के अनुरूप परिवार को चलाएं तो हमारे घर परिवार की कोई भी बालिका अथवा महिला रास्ते से नहीं भटकेगी। हम तो संयुक्त परिवार की संस्कृति में भरोसा रखते हैं। अपनी बात को एक उदाहरण के तौर पर रखते हुए भागवत ने बताया कि अभी दो दिन पहले ही वे गुजरात के सूरत में अपने एक परिचित के घर पर भोजन करने गए तो उन्होंने देखा कि घर में 70 सदस्य हैं। मुझे यह जानकार आश्चर्य हुआ कि उस परिवार में 70 सदस्यों का एक साथ भोजन तैयार होता है। परिवार के मुखिया ने बताया कि यंू तो हमारे परिवार में 287 सदस्य हैं, लेकिन दूसरे शहरों और विदेशों में चले जाने के कारण वर्तमान में 70 सदस्य ही है। लेकिन साल में एक बार सभी 287 सदस्य एक साथ एकत्रित होते हैं। कुछ सदस्य तो अमरीका से सूरत आते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में छठ पर्व पर परिवार का सदस्य अपने घर पर आता ही है। जिस संस्कृति की परंपरा इतनी मजबूत हो, तो फिर उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में तो स्त्री और पुरुष में कोई भेद ही नहीं है। हमने तो दोनों को एक ही माना है। हमारे यहां तो अद्र्धनारीश्वर के स्वरूप को मानते हैं। उन्होंने माना कि विज्ञान और नई तकनीक के आने से हमारी संस्कृति पर पश्चिम की संस्कृति का हमला हुआ है, लेकिन हमारी परिवार व्यवस्था इतनी मजबूत है कि इस हमले से घबराने की जरुरत नहीं है। उन्होंने कहा कि उनकी चौखट दोषपूर्ण है, जबकि हमारी चौखट बहुत मजबूत है। हमें इस चुनौती का धर्म के अंतर्गत मुकाबला करना है। जब हम सृष्टि को आगे ले जाने के लिए स्त्री-पुरुष को एक मानते हैं, तो फिर भेद कैसा? विदेशी आक्रमण के कारण हमारी संस्कृति को कुछ नुकसान हुआ। जिसकी वजह से विकृतियां आ गई हैं। हिन्दू धर्म का मतलब ही मानव धर्म है। यह बात अलग है कि एक महिला स्लम क्षेत्र में रहती है, तो दूसरी शहर में। इसका यह मतलब नहीं कि हमने महिलाओं में भेद कर दिया है।
भागवत ने कहा कि कुछ लोग हमारे धर्म ग्रंथों को सामने रखकर बुराईयां निकालते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी बुराईयों की ओर ध्यान देने की जरुरत नहीं है। यह सिर्फ भ्रम फैलाने के लिए किया जा रहा है। यहां भारत में दोपद्री का चरिहरण और कृष्ण का यह कहना कि इन्द्र की पूजा न करें, हमें ऐसी बुराईयों को अलग रखकर आगे बढऩा है। महात्मा गांधी पहले मांसाहारी थे, लेकिन बाद में शाकाहार का सबसे ज्यादा प्रचार महात्मा गांधी ने ही किया।
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, यह सब ताडऩ के अधिकारी।
तुलसीदास जी के इस कथन पर भागवत ने कहा कि यदि हमारे पूर्वजों ने कोई गलती की है, तो हमें उसे छोड़ देना चाहिए। बुराई की ओर नहीं, अच्छाई की ओर देखना चाहिए। जब हम स्त्री पुरुष में कोई भेद नहीं मान रहे हैं, तो फिर ऐसे कथनों का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि पैसा कमाने वाला अच्छा मनुष्य नहीं, बल्कि पैसा बांटने वाला अच्छा मनुष्य होता है। संघ में महिलाओं के संदर्भ में भागवत ने कहा कि सही बात तो यह है कि संघ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व ही नहीं है। संघ ने इसके लिए राष्ट्र सेविका समिति बना रखी है। जिसकी कार्यकर्ता समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हंै। उन्होंने कहा कि संघ में महिलाओं की उपस्थिति का सवाल उठाया जा रहा है, लेकिन 1925 में जब डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की, तब सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं की सक्रियता इतनी नहीं थी। उन्होंने माना कि खुसर-पुसर के डर से महिलाओं को दूर ही रखा गया। लेकिन यह सब परिस्थितियों पर निर्भर करता है, अब यदि संघ में सीधे महिलाओं को सक्रिय करने की बात आएगी तो देखा जाएगा। लेकिन देखा जाए तो महिलाएं तो संघ परिवार से जुड़ी हुई है। हम जब एक स्वयं सेवक तैयार करते हैं तो उसके परिवार के सभी सदस्य हमारी विचारधारा के अनुकूल होते हैं। उन्होंने कहा कि आपातकाल में हमारे प्रचारकों और स्वयं सेवकों को हमारी विचारधारा की महिलाओं ने ही आश्रय दिया। क्या यहां संघ में महिलाओं की सक्रियता नहीं है? उन्होंने माना कि हमसे पहले वामपंथी और कांग्रेस के दलों में महिलाएं सक्रिय हैं। लेकिन अब संघ परिवार के विद्यार्थी परिवार, मजदूर संघ, राजनीति आदि में महिलाएं सक्रिय हैं। फिर भी मैं मानता हंू कि इसकी गति और बढऩी चाहिए।  संगोष्ठी में भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर, राष्ट्रीय सेविका समिति की अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्रीमती सुनीला सोवनी, राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय कार्यवाहिका श्रीमत अलका ईनामदार, डॉ. सुवर्णा रावल, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट मोनिका अरोड़ा, अखिल भारतीय स्त्री शक्ति संगठन की उपाध्यक्ष श्रीमती नैना सहस्त्रबुद्धे, मृणाली आदि ने भी भारतीय संस्कृति के अनुरूप महिलाओं के पक्ष को रखा। इन विद्वानों ने बताया कि महिलाओं का इतिहास और गौरव समृद्धशाली रहा है। सतयुग से लेकर वर्तमान दौर तक महिलाओं की स्थिति के बारे में संगोष्ठी में विस्तार के साथ समझाया गया।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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