Tuesday 15 September 2015

मोहन भागवत की सादगी और धैर्य से सबक लें संगठन और सरकार चलाने वाले।


आज देश में पीएम नरेन्द्र मोदी से ज्यादा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की चर्चा होती है। कहा जाता है कि मोदी के पीएम बनने में जितनी भी बाधाएं थीं, उन्हें भागवत ने ही हटाया और अब तो मीडिया में यहां तक कहा जाता है कि मोदी सरकार का रिमोट मोहन भागवत के पास है। देश के ऐसे माहौल में ही मुझे दो दिन मोहन भागवत के साथ रहने का अवसर मिला और इसलिए मैं यह कह रहा हंू कि संगठन और सरकार चलाने वालों को भागवत की सादगी और धैर्य से सबक लेना चाहिए। जयुपर में 12 व 13 सितम्बर को देशभर के ब्लॉगरों और स्तंभ लेखकों की एक संगोष्ठी हुई। इस संगोष्ठी के सभी सत्रों में भागवत ने अपनी उपस्थिति प्रभावी तरीके से दर्ज करवाई। ऐसा नहीं कि हर सत्र में भागवत बोले हों। भागवत ने सभी वक्ताओं को धैर्य से सुना। एक साधारण श्रोता की तरह भागवत ने भी डायरी में पॉइंट नोट किए। ऐसा लगा ही नहीं कि जिस व्यक्ति के पास देश की सरकार का रिमोट है, वह इस संगोष्ठी में बैठे हैं। संघ के विचारक माने जाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने अपनी बातों को दृढ़ता के साथ रखा तो भी भागवत मुस्कुराते रहे। क्या किसी संगठन का मुखिया ऐसी सादगी और धैर्य दिखा सकता है? दो दिन में एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि यह संगोष्ठी देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति की उपस्थिति में हो रही है। जब भी सत्र समाप्त हुआ, तब एक आम व्यक्ति की तरह भागवत सभी लेखकों से विनम्रता के साथ मिले। हम लोगों ने एक बार नहीं, बल्कि कई बार भागवत से संवाद किया। एक मुलाकात में जब मैंने कहा कि मेरा नाम एस.पी.मित्तल है और मैं अजमेर से आया हंू, तो भागवत ने कहा कि मैं आपके ब्लॉग पढ़ता हंू। मेरे लिए इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं हो सकता। मुझे भले ही कोई सरकारी सम्मान न मिला हो, लेकिन मेरे जीवन में यह दूसरा अवसर रहा, जब मुझे अपने लिखने पर संतोष हुआ। इससे पहले नवम्बर 2005 में जब मैंने अजमेर के सर्किट हाऊस में तब के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात की और इस मुलाकात के विवरण को जब अपने भभक समाचार पत्र में प्रकाशित किया तो कलाम साहब ने मुझे आत्मीयता भरा पत्र लिखा। हालांकि तब सोशल मीडिया का जमाना नहीं था, लेकिन अब तो मेरे लेखन को सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में पढ़ा जा रहा है। पाठकों ने मेरे प्रति जो सद्भावना दिखाई है, उसी का परिणाम रहा कि भागवत ने मुझे पहचाना। मुझे इससे बड़ा और क्या सम्मान चाहिए। एक कलम घसीट के लिए यही गर्व की बात है कि उसके लेखन को लोग पढ़ रहे हैं। इस मौके पर मैं अपने चाहने वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हंू।
ऐसा नहीं कि संगोष्ठी में भागवत के लिए अलग से कोई व्यवस्था की गई। जयपुर के दुर्गापुरा स्थित कृषि अनुसंधान  केन्द्र परिसर में ही देशभर के लेखक भागवत एक साथ ठहरे। भागवत हमेशा की तरह कुर्ता और पायजामा में नजर आए। हर वक्ता को बोलने का अवसर दिया। तीखे सवालों का जवाब भी भागवत ने सरलता के साथ दिया। आम तौर पर मीडिया को लगता है कि संघ कोई सहयोग नहीं करता है, लेकिन दो दिन में मुझे ऐसा नहीं लगा। क्या देश में किसी संगठन का मुखिया अथवा राजनेता है जो सिर्फ सुनता रहे? हमने देखा है कि गांव का सरपंच और वार्ड का पार्षद किसी समारोह में ऐसे आता है, जैसे दुनिया का सबसे व्यस्त व्यक्ति यही है। मैं यहां पर स्पष्ट कर देना चाहता हंू कि संगोष्ठी में देश के कोई ख्यात नाम मीडिया घरानों के पत्रकार, लेखक प्रतिनिधि, मालिक नहीं थे। संगोष्ठी मेरे जैसे छोटे और साधारण ब्लॉगर अथवा स्तंभ लेखक थे। इसे भागवत की सादगी ही कहा जाएगा कि उन्होंने हम सब को सम्मान दिया। हम लोगों को चाय मिली या नहीं, खाना खाया या नहीं, हमको लेकर भी भागवत जागरुक रहे। इस संगोष्ठी की एक खासबात यह भी रही कि भाजपा से जुड़े लोगों को दूर रखा गया। भागवत की उपस्थिति को देखते हुए भाजपा सरकार के मंत्री और कुछ प्रभावशाली लोग संगोष्ठी में आना चाहते थे, लेकिन किसी को भी अनुमति नहीं मिली। इसे संघ का सख्त अनुशासन ही कहा जाएगा।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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