Thursday 17 September 2015

माता-पिता की सेवा करने वाले ही मनाएं गणेशोत्सव।

पूरे देश में गणेशोत्सव की धूम है। 17 सितम्बर से शुरू हुआ यह उत्सव आगामी 11 दिनों तक चलेगा। इसे भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा ही कहा जाएगा कि जगह-जगह गणेश जी की प्रतिमाएं स्थापित कर धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं। घरों में भी गणपति को स्थापित किया गया है। जो लोग गणेशोत्सव में डूबे हुए हैं उन्हें यह तो पता ही होगा कि गणेश जी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी ने अपने माता-पिता की जो सेवा की उसी से प्रसन्न होकर शिव पार्वती ने पुत्र गणेश को आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद भी ऐसा की किसी भी  शुभ कार्य से पहले गणेश जी को विराजमान किया जाता है। इसे भारतीय संस्कृति की सीख ही कहा जाएगा कि जब हम गणेश जी को विराजमान कर देते हैं तो फिर किसी भी समारोह में विघ्न नहीं पड़ता है। इसी लिए मैंने यह सवाल उठाया है कि गणेशोत्सव मनाने वाले क्या अपने माता-पिता की सेवा भी करते हैं? ऐसा न हो कि हम सार्वजनिक स्थलों पर बड़ी-बड़ी गणेश की प्रतिमाएं लगाए और 11 दिनों तक जश्न में डूबे रहे, जबकि हमारे माता-पिता अपने घर की एक कोठरी में अनाथों जैसे रहे। यदि हम गणेशोत्सव मनाते हैं तो हमें गणेश की शिक्षाओं पर अमल भी करना चाहिए। मैं यह बात अपने अनुभव और विश्वास के साथ कह सकता हंू कि जिन्दगी का सबसे बड़ा महोत्सव अपने माता-पिता की सेवा करने का है। हम 11 दिनों तक कितनी भी बार गणेश की आरती करलें, लेकिन यदि अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, तो गणेश जी की आरती का कोई मतलब नहीं है। उत्सव मनाने वालों को इतना समझना चाहिए कि जब स्वयं गणेश जी अपने माता-पिता के आशीर्वाद से पूजे गए तो फिर हम अपने माता-पिता के आशीर्वाद के बिना सफलता कैसे प्राप्त कर सकते हैं। यह भी सही है कि कोई भी माता-पिता अपने नालायक बच्चों के प्रति भी दुर्भावना नहीं रखते हैं। भले ही नालायक बच्चे बुजुर्ग माता-पिता को इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ दें, लेकिन फिर भी माता-पिता अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं। जिन परिवारों में माता-पिता का सम्मान होता है, उन परिवारों में गणेशोत्सव 11 दिन नहीं, बल्कि 365 दिन मनाया जाता है। जो युवा बड़े जोश और खरोश के साथ इन दिनों गणेशोत्सव मना रहे हैं,उन्हें इस ब्लॉग को पढऩे के बाद आत्म विश्लेषण करना चाहिए। यदि ऐसे युवा अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं तो फिर उन्हें गणेशोत्सव के आयोजन से दूर हो जाना चाहिए।

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