Sunday 6 September 2015

बुराइयों के लिए महिलाएं खुद जिम्मेदार

चार साल बाद हो नरेन्द्र मोदी के काम का आंकलन-राष्ट्रसंत संत पुलक सागर
राष्ट्र संत पुलक सागर महाराज ने कहा कि महिलाओं के सामने आज जो अनेक समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं उसके लिए स्वयं महिलाएं जिम्मेदार हैं। यदि महिलाएं बुराइयों से बच जाएं तो परिवार, समाज और देश खुशहाल हो जाए।
पुलक सागर इन दिनों अजमेर में चातुर्मास कर रहे हैं। रविवार को एक खास मुलाकात में महाराज ने माना कि इंटरनेट, टीवी और मोबाइल के चलते महिलाओं खासकर स्कूल, कॉलेज में पढऩे वाली लड़कियों को अनेक समस्याओं का सामन करना पड़ रहा है। यह बुराइयां ही महिला सशक्तिकरण में बाधक हैं। होना यह चाहिए जब कोई बच्ची गलती करे तो उसकी मां और दादी उसके मुंह पर तमाचा मारे। लेकिन आज ऐसा होता नहीं है। बच्ची की गलती पकड़ में आने पर उसे संरक्षण दिया जाता है। उन्होंने कहा कि महिला सम्पूर्ण समाज की केन्द्र बिन्दू है। जिस परिवार की महिला सुयोग्य होती है, वह परिवार लाख बुराइयों के बाद भी खुशहाल बन जाता है और जब परिवार खुशहाल होता है तो समाज और देश अपने आप खुशहाल हो जाता है। उन्होंने कहा कि स्कूल, कॉलेज में पढऩे वाली लड़कियों को मोबाईल जैसी बुराइयों से बचना चाहिए।
राष्ट्र संत पुलक सागर ने कहा कि इन दिनों धर्म निरपेक्षता को लेकर बहुत ढिंढोरा पीटा जा रहा है जबकि पहले राष्ट्रीयता जरूरी है। यदि राष्ट्र रहेगा तो धर्म निरपेक्षता भी बचेगी। यदि राष्ट्र ही नहीं बचेगा तो फिर धर्म निरपेक्षता किसके काम आएगी। आज जरूरत इस बात की है कि हम देश की एकता और अखण्डता को बनाए रखें। ऐसा ना हो कि धर्म निरपेक्षता की वजह से देश विखण्डित हो जाए। उन्होंने कहा कि धर्म में राजनीति नहीं, राजनीति में धर्म जरूरी है। धर्म के माध्यम से ही हम राजनीति को सुधार सकते हैं। जब गंदा पानी गंगा में गिरता है तो वह पवित्र हो जाता है। लेकिन जब गंगा का पानी नाले में गिरता है तो वह गंदा हो जाता है। यही हाल धर्म और राजनीति का है। अब यह राजनेताओं को तय करना है कि वे कैसा बनना चाहते हैं?
पुलक सागर महाराज ने माना कि अब बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन होने लगे हैं तथा साधु संतों के प्रवचन भी टीवी के माध्यम से करोड़ों लोगों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी समाज में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि साधु संतों के प्रवचनों का असर नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज समाज में जितना भी धर्ममय माहौल नजर आ रहा है उसके पीछे साधु संतों के प्रवचन ही है। इतना जरूर है कि जो प्रवचन संत और श्रद्धालु के आमने-सामने बैठकर होता है उसका असर ज्यादा होता है। जो लोग टीवी के माध्यम से प्रवचन ग्रहण करते हैं, उसका असर थोड़ा कम होता है। उन्होंने कहा कि जब आप किसी संत के सामने बैठकर प्रवचन सुनते हैं तो आपका मन और मस्तिष्क एकाग्रचित होता है। वहीं जब अपने घर पर टीवी के सामने प्रवचन सुनते हैं तो मन और मस्तिष्क डोलता रहता है। लेकिन अब संचार क्रांति के दौर में टीवी और अन्य माध्यम से प्रवचन जरूरी भी हो गए हैं।
पीएम के काम का आंकलन:
राष्ट्र संत ने कहा कि उनकी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है लेकिन वे इतना जरूर मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कामकाज का आंकलन 4 वर्ष बाद करना चाहिए। जिन लोगों ने इस देश पर 50 वर्ष से ज्यादा तक शासन किया वे लोग मात्र डेढ़ वर्ष में मोदी से काम का हिसाब मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने देश के सामाजिक विकास के लिए पहल की है। जब वे सबका साथ सबका विकास का उद्देश्य लेकर काम कर रहे हैं तो उनके कथन पर भरोसा भी करना चाहिए। उन्होंने माना कि देश के हालात बेहद खराब हैं जिन्हें सुधारने में थोड़ा वक्ता तो लगेगा ही। यह भी सही है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत सारे सपने दिखाए गए थे लेकिन वे सपने अभी पूरे नहीं हुए हैं। लोगों को मोदी से कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हैं।
आशीर्वाद और साहित्य दिया:
राष्ट्रसंत पुलक सागर महाराज ने 6 सितम्बर को मुझे आशीर्वाद देने के सथ साहित्य भी दिया। मैंने भी अवसर का लाभ उठाते हुए आग्रह किया कि मुझे निडरता और ईमानदारी के साथ नियमित लिखने का आशीर्वाद दें। इस पर महाराज ने मेरे लेखन वाले हाथ पर अपने हाथों से रक्षा सूत्र बांधा। मुझे उम्मीद है कि महाराज ने मेरे मन मुताबिक आशीर्वाद भी दिया होगा। मैं यहां पुलक सागर महाराज के कुछ कोटेशन लिख रहा हूं जो वाकई मनुष्य के लिए महत्व रखते हैं।
जिस मंदिर में मुश्किल से एक घंटे रहना है उस मंदिर का वातावरण शांत और पवित्र बना आते हो। पर जिस घर में तेईस घंटे रहना है उस घर को पवित्र और शांत क्यों नहीं बना पाते?
यदि पुत्र नियंत्रण में है, पत्नि आज्ञाकारी है और जीने के लिए धन पर्याप्त है तो अब किसी और स्वर्ग की कामना क्यों करते हो?
जिसके जीवन में दु:ख और मुसीबतें आती हैं वो बुरा नहीं होता। बुरा तो वो है जिसके जीवन में, आचरण में और सोच में बुराई हो। फिर हम जिसके जीवन में सुख साधन के साथ बुराईयों भी हो उसे अच्छा आदमी क्यों समझते हैं?
जिसमें सभी के हित की मंगल भावना समाहित हो वह प्रार्थना है। फिर हम ऐसी प्रार्थना क्यों करते हैं जिसमें केवल और केवल हमारा ही हित हो?

No comments:

Post a Comment