Saturday 5 September 2015

सरकार बड़ी या आनन्दपाल सिंह

12 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने से क्या होगा?
राजस्थान की भाजपा सरकार के लिए बेहद ही शर्मिन्दगी की बात है कि कुख्यात अपराधी आनन्दपाल सिंह पांच सितम्बर को भी नहीं पकड़ा गया। आनन्दपाल तीन सितम्बर को दिनदहाड़े पुलिस पर फायरिंग कर अपने दो कैदी साथियों के साथ फरार हो गया था। आनन्दपाल को ढूंढने के लिए प्रदेश भर की पुलिस लगी हुई है। लेकिन पुलिस को सुराग तक नहीं मिला है। इसीलिए यह सवाल उठता है कि सरकार बड़ी या आनन्दपाल। राजस्थान कोई घने जंगलों वाला प्रदेश नहीं है और ना ही आनन्दपाल रात के अंधेरे में फरार हुआ। आनन्दपाल जब सशस्र जवानों के साथ पुलिस वाहन में डीडवाना से अजमेर सेन्ट्रल जेल आ रहा था तब परबतसर के निकट उसके साथियों ने हमला किया और बड़ी आसानी से आनन्दपाल दो साथियों के साथ भाग गया। जब शहरी क्षेत्र में आनन्दपाल को नहीं खोजा जा सका है तो फिर सरकार की कार्यकुशलता पर सवाल तो उठता ही है। सरकार के पास तमाम साधन और तकनीक होती है लेकिन इसके बावजूद भी एक अपराधी का पकड़ा नहीं जाना शर्मनाक बात है। सरकार ने अब आनन्दपाल का सुराग देने वाले को इनाम देने की भी घोषणा की है। यानी सरकार ने यह दिखा दिया है कि उसकी पुलिस अपने स्तर पर आनन्दपाल को खोज नहीं सकती है। सवाल उठता है कि जो आनन्दपाल दिनदहाड़े सशस्र पुलिस जवानों पर फायरिंग कर फरार हो गया तो उसके बारे में कोई व्यक्ति पुलिस को सूचना कैसे देगा? सरकार की जीत तो तभी है कि वह हर स्थिति में आनन्दपाल को पकड़कर जेल में बंद करे।
अफसरों पर हो कार्यवाही
आनन्दपाल की फरारी में पहली नजर में दोषी मानते हुए एक थाना अधिकारी सहित 12 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है। सस्पेंड होने वालों में पबतसर के एसएचओ अनिल पांडे, एस.आई फूलचन्द, कांस्टेबल राजेन्द्र सिंह, जगदीश प्रसाद, सावरमल, अर्जुनलाल, हरदीप, सुनील, राजेन्द्र (सभी अजमेर), मुकेश, गोपाल (टोंक), शक्ति सिंह (नागौर) सवाल उठता है कि छोटे स्तर के पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने से क्या हासिल होगा? क्या इन कर्मियों की वजह से आनन्दपाल फरार हुआ? आरोप तो यह है कि अजमेर और नागौर के बड़े पुलिस अधिकारियों की नीतियों और निर्णयों की वजह से आनन्दपाल को फरार होने का अवसर मिला। जिस प्रकार आनन्दपाल की सुरक्षा में लगे जवानों की संख्या में कटौती की है। उसी से आनन्दपाल को फरार होने का अवसर मिला। अच्छा होता कि छोटे अधिकारियों के बजाए बड़े अधिकारियों पर कार्यवाही होती। सब जानते हैं कि आनन्दपाल के राजनेताओं से भी रिश्ते हैं। जब आनन्दपाल बीकानेर की जेल में था तब भाजपा सरकार का एक मंत्री आनन्दपाल से मिला। यह मंत्री नागौर से विधानसभा का चुनाव भी आनन्दपाल के दम से जीता था। आनन्दपाल की नागौर की राजनीति में जबरदस्त पकड़ है। फरारी की जांच के दायरे में आनन्दपाल के राजनैतिक संरक्षण को भी शामिल किया जाना चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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