Tuesday 10 July 2018

तो क्या वसुंधरा राजे द्वारा नियुक्त पदाधिकारियों को हटाने की हिम्मत दिखा पाएंगे मदनलाल सैनी?

तो क्या वसुंधरा राजे द्वारा नियुक्त पदाधिकारियों को हटाने की हिम्मत दिखा पाएंगे मदनलाल सैनी? कोर कमेटी में ही हो गई घालमेल। राजस्थान में भाजपा की राजनीति।
======

मदनलाल सैनी के राजस्थान प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद 9 जुलाई को पहली बार भाजपा कोर कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक के बाद सैनी ने कहा कि नई प्रदेश कार्यकारिणी की जल्द घोषणा की जाएगी। नई कमेटी में युवाओं को तरजीह दी जाएगी। इसलिए यह सवाल उठा है कि क्या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा नियुक्त पदाधिकारियों को हटा दिया जाएगा? सब जानते हैं कि अशोक परनामी ने प्रदेशाध्यक्ष के पद पर रहते हुए वो ही किया जो सीएम राजे ने चाहा। एक तरह से सीएम ही प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका में रहीं। यहां तक जिलाध्यक्ष भी सीएम के निर्देशों पर बने। परनामी ने सभी नियुक्तियां सीएम की सहमति से ही की। परनामी के अध्यक्ष रहते सत्ता और संगठन का भेद ही खत्म हो गया था। भाजपा के विधायक भी इसलिए संतुष्ट रहे कि उन्हीं की सिफारिश पर मंडल अध्यक्ष बनाए गए। यानि संगठन का जो ढांचा सीएम राजे ने तैयार किया, क्या उसे सैनी बदलने की हिम्मत रखते हैं? यह भी सही है कि सैनी की नियुक्ति भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के दखल से ही हुई है। ऐसे में देखना होगा कि सैनी को केन्द्र से कितनी हिम्मत मिलती है। जहां तक सैनी का सवाल है तो उनकी छवि संगठन के प्रति समर्पित कार्यकर्ता की है।
कोर कमेटी में घालमेलः
राजे द्वारा बनाई कार्यकारिणी में कितना बदलाव होता है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन 9 जुलाई को सबने देखा कि किस तरह भाजपा की कोर कमेटी में घालमेल हो गई। कोर कमेटी की बैठक में श्रीचंद कृपलानी, राजेन्द्र सिंह राठौड़, यूनुस खान, अरुण चतुर्वेदी जैसे मंत्रियों की उपस्थिति जाहिर कर रही थी कि बैठक में वो ही निर्णय होगा जो सीएम राजे चाहेंगी। सवाल उठता है कि इन मंत्रियों की उपस्थिति कैसे हुई? कोर कमेटी के वरिष्ठ सदस्य और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर तथा प्रदेशाध्यक्ष सैनी ने तो इन मंत्रियों को निमंत्रण नहीं दिया होगा। कोर कमेटी की बैठक में पूर्व प्रदेशाध्यक्ष परनामी भी उपस्थित थे, जिनके नाम का उल्लेख सीएम राजे ने कई बार किया। हालांकि इस बैठक में ओम माथुर उपस्थित रहे, लेकिन राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव की अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही।
अजमेर पर नजरः
संभावित बदलाव में अजमेर शहर पर भी नजर है। अजमेर शहर उन तीन चार शहरों में शामिल हैं, जहां गत वर्ष चुनाव नहीं हो सके थे। अजमेर देहात में तो बीपी सारस्वत का चुनाव हो गया, लेकिन भाजपा नेताओं की आपसी खींचतान में चुनाव की प्रक्रिया नहीं हुई। लोकसभा के उपचुनाव में भी शहर की दोनों सीटों से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश नेतृत्व में बदलाव के साथ ही अजमेर शहर में अध्यक्ष बनने वाले भाजपा नेता सक्रिय हो गए हैं। इस बार दोनों मंत्रियों में भी आपसी सहमति करवाई जा रही है।
एस.पी.मित्तल) (10-07-18)
नोट: फोटो मेरी वेबसाइट www.spmittal.in
https://play.google.com/store/apps/details? id=com.spmittal
www.facebook.com/SPMittalblog
Blog:- spmittalblogspot.in
M-09829071511 (सिर्फ संवाद के लिए)
================================
अपने वाट्सएप ग्रुप को 7976585247 नम्बर से जोड़े
  

No comments:

Post a Comment