Friday 27 July 2018

राजस्थान के लाॅ काॅलेजों को बीसीआई से अभी तक मान्यता नहीं।

राजस्थान के लाॅ काॅलेजों को बीसीआई से अभी तक मान्यता नहीं। सीएम की सुराज गौरव यात्रा 4 से।
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नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी सरकार की उपलब्धियां आम लोगों तक पहुंचाने के लिए सीएम वसुंधरा राजे 4 अगस्त से सुराज गौरव यात्रा शुरू कर रही हैं। लेकिन वहीं सच्चाई यह है कि राजस्थान के सभी 15 सरकारी लाॅ काॅलेजों को अभी तक भी बार कौसिंल आॅफ इंडिया (बीसीआई) से मान्यता नहीं मिली है। ऐसे में प्रदेश भर के लाॅ काॅलेजों में प्रथम वर्ष में प्रवेश भी नहीं हुए है। मान्यता के अभाव में अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की डिग्री भी खतरे में पड़ गई है। जो विद्यार्थी कानून की पढ़ाई कर रहे हैं वो ही सरकार के नियमों में उलझ हैं। प्रदेश के हजारों विद्यार्थी इधर-उधर भटक रहे हैं। लेकिन सुराज वाले शासन में कोई सुनने वाला नहीं हैं। विद्यार्थियों की परेशानी को देखते हुए भाजपा की समर्थक माने जाने वाली विद्यार्थी परिषद ने भी आंदोलन किया, लेकिन राज्य सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।
काॅलेजों में न अध्यापक न सुविधाः
असल में बीसीआई ने लाॅ काॅलेजों की मान्यता के लिए जो मापदंड निर्धारित कर रखे हैं उन पर राजस्थान के काॅलेज खरे नहीं उतरते हैं। काॅलेजों में न तो पर्याप्त शिक्षक है और न ही लाइब्रेरी मूट कोर्ट जैसी सुविधाएं हैं। हर बार सुविधाओं के अभाव में बीसीआई एक वर्ष के लिए मान्यता देती है। लेकिन इस बार बीसीआई ने भी सख्त रवैया अपना रखा है। उदाहरण के लिए अजमेर के लाॅ काॅलेज का मामला यहां लिखा जा रहा है। दस अध्यापकों में से 6 की नियुक्ति की गई। इनमें से दो अध्यापक प्रतिनियुक्ति पर जयपुर स्थित काॅलेज निदेशालय में चले गए। एक शिक्षक का हाल ही में तबादला हो गया, जबकि एक महिला शिक्षक मेट्रनिटी लीव पर है। यानि पूरे काॅलेज में मात्र दो शिक्षक हैं। इनमें से एक कार्यवाहक प्राचार्य बन गया है। यानि अब एक ही शिक्षक है। लाइब्रेरी मूट कोर्ट जैसी सुविधा तो है ही नहीं। यही वजह है कि अभी तक एमडीएस यूनिवर्सिटी ने भी अजमेर के सरकारी लाॅ काॅलेज को सम्बद्धता नहीं दी है। बीसीआई का यही सवाल है कि क्या मात्र दो शिक्षक पर किसी काॅलेज को मान्यता दी जा सकती है।
शिक्षकों का अभावः
असल में प्रदेश में लाॅ काॅलेज के शिक्षकों का अभाव है। हालात इतने खराब है कि राजस्थान लोक सेवा आयोग ने वर्ष 2014 की भर्ती का कार्य भी पूरा नहीं किया है। इंटरव्यू लेने के बाद परीक्षा परिणाम घोषित नहीं हो रहा है। कुछ भर्तियां हाईकोर्ट के आदेश से रुकी हुई हैं। तो अनेक भर्तियां राज्य सरकार और लोक सेवा आयोग के आपसी तालमेल के अभाव में अटकी है। जानकारों की माने तो कुछ निर्णय मुख्यमंत्री के स्तर पर नहीं हो पा रहे है। आयोग में पिछले डेढ़ दो वर्ष से चार-चार माह के लिए अध्यक्ष लगाए गए। इससे आयोग का पूरा ढर्रा ही बिगड़ गया। आईएएस दीपक उप्रेती ने 23 जुलाई को ही अध्यक्ष का पद संभाला है। उम्मीद है कि आयोग के काम काज को गति मिलेगी।
एस.पी.मित्तल) (26-07-18)
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