Thursday 21 January 2016

रक्तदान से भी बढ़कर है मां का दूध दान करना। राजस्थान में खुलेंगे 10 मदर मिल्क बैंक।


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भारतीय संस्कृति में किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक जमाना ऐसा आएगा, अब नवजात शिशु मंदिर की सीढिय़ों,कचरे के ढेर, नदी नालों में पड़े मिलेंगे। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में रोजाना खबरें पढऩे को मिलती हैं कि नवजात शिशु लावारिस पड़ा मिला है। जो निर्दयी लोग शिशु को लावारिस फेंक देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि इसकी जान कैसे बचेगी। ऐसे लावारिस नवजात शिशुओं की जान बचाने का बीड़ा योग गुरु देवेन्द्र अग्रवाल ने उठाया है। अग्रवाल उदयपुर में मां भगवती विकास संस्थान के संस्थापक हैं और अप्र्रैल 2013 से मांके दूध का बैंक चला रहे हैं। 3 हजार 317 माताओं से अब तक 757 लीटर दूध का दान करवाया गया है। सरकारी अस्पतालों में भर्ती दो हजार से भी ज्यादा नवजात शिशुओं का जीवन बचाया गया है। 21 जनवरी को योगगुरु अग्रवाल ने मुझसे मुलाकात की। उन्होंने बताया कि उनके संस्थान के कामकाज को देखते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रदेश के दस शहरों में मदर मिल्क बैंक खोलने की घोषणा की है और इसके लिए 10 करोड़ रुपए की राशि भी स्वीकृत की है। ऐसे बैंक चित्तौड़, भीलवाड़ा, बारा,बूंदी, टोंक, भरतपुर, अलवर, बांसवाड़ा, चूरू के साथ-साथ अजमेर जिले के ब्यावर के अमृतकौर अस्पताल में भी खुलेगा। योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि जागरुकता की वजह से रक्तदान तो आसान हो गया है, लेकिन मां के दूध के दान का काम बेहद ही कठिन है। ऐसा कई बार होता है कि शिशु को जन्म देने के बाद एक मां को अपने स्तन से दूध बेवजह निकलना होता है। सरकार की मदद से 10 स्थानों पर जो बैंक खोले जा रहे हैं। उनमें मां का दूध एकत्रित किया जाएगा। बच्चे को जन्म देने के बाद तीन प्रकार की माताएं दूध का दान कर सकती हैं। 1.अपने बच्चे को स्तनपान कराने के बाद अतिरिक्त दूध का दान 2. वे माताएं जिनके बच्चे चिकित्सा कारणों से स्तनपान नहीं कर पा रहे है 3. जिन बच्चों के जन्म के तुरंत बाद मृत्यु हो जाती है। ऐसी माताओं से जो दूध दान में मिलगा उसे बैंक की लैब में सुरक्षित रखा जाएगा। दूध की जांच के बाद ही छोटी शिशियों में दूध को भरकर उन नवजात शिशुओं को पिलाया जाएगा। जो किसी मंदिर की सीढिय़ों अथवा कचरे के ढरे में पड़े मिले हैं। 
योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने बेहद ही संवेदनशील रुख अपनाया है। कई बार लावारिस शिशुओं की मौत इसलिए हो जाती है कि उन्हें मां का दूध नहीं मिलता। चिकित्सा विभाग भी मानता है कि मां के दूध में वो शक्ति हैजो कमजोर से कमजोर शिशु को भी ताकतवर बना देता है। उन्होंने कहा कि मां के दूध के दान के लिए वैसी ही जागरुकता चाहिए जैसे रक्तदान के लिए हुई है। आधुनिक और उपभोक्तावादी संस्कृति में महिला के स्तन को सैक्स की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं भारतीय संस्कृति में महिला अपने स्तन की सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ती है। रक्तदान आमतौर पर पुरुष करते है,जबकि दूध का दान तो सिर्फ महिलाओं को ही करना होता है। रक्तदान पुरुष अस्पताल में जाकर अपने हाथ से कर देता है, जबकि मां के दूध के लिए तो बहुत सारे जतन करने पड़ते हैं। पहली बात तो दूध के दान के लिए मां को मानसिक तौर पर तैयार करना है, चूंकि स्तन से दूध विशेष उपकरण के जरिए निकाला जाता है। ऐसे में मां को भी मानसिक परेशानी तो होती ही है, लेकिन इन सब चुनौतियों से निपटते हुए ही मदर मिल्क बैंक खोले जा रहे है। इसके साथ ही पालना घर का काम भी जुड़ा हुआ है। सरकार ने उन्हीं के संस्था की प्रेरणा से प्रदेश में 65 सरकारी चिकित्सालयों में पालना घर खोले है। जो लोग लोकलाज की वजह से अपने शिशुओं को मंदिर की सीढिय़ों और कचरे के ढेर में फेंकते हैं, उन्हें चाहिए कि वे पालना घर में शिशुओं को छोड़ आएं। जिन शिशुओं को पालना घर में पाला जाता है, उन्हें बाद में निर्धारित प्रक्रिया से गोद दे दिया जाता है। जो लोग इन सब सामाजिक कार्यों को और अधिक समझना चाहते हैं वे मोबाइल नम्बर 9414163163 पर योग गुरु देवेन्द्र अग्रवाल से सीधे सम्पर्क कर सकते हैं। 
(एस.पी. मित्तल)  (21-01-2016)
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