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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खुले संरक्षण की वजह से अजमेर जिला प्रशासन में कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक की दहशत है। सिटी मजिस्ट्रेट हरफूल सिंह यादव को प्रभावहीन करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि जिला रसद अधिकारी सुरेश सिंधी के कामकाज को लेकर राज्य के कार्मिक विभाग को शिकायती पत्र लिख दिया गया है। इस पत्र में कहा गया है कि सुरेश सिंधी बिना स्वीकृति के अवकाश पर चले जाते हैं और अपने विभाग का काम भी संतोषजनक तरीके से नहीं करते। चूंकि यह पत्र कलेक्टर ने लिखा है इसलिए माना जा रहा है कि सिंधी को चार्जशीट मिल सकती है। हालांकि सिंधी भी पुराने और होशियार अधिकारी माने जाते हैं, लेकिन कलेक्टर ने जिस तरह से बड़ी कार्यवाही की है, उससे पूरे प्रशासन में दहशत है। ऐसे माहौल को देखते हुए ही अतिरिक्त कलेक्टर प्रशासन किशोर कुमार पुरजोर कोशिश कर रहे हंै कि अजमेर से स्थानांतरण हो जाए। लेकिन जैसे-तैसे कुमार तो अपना काम कर ही रहे हैं। दहशत के इस माहौल में एसडीओ हीरालाल मीणा और सहायक कलेक्टर राधेश्याम मीणा निर्डर होकर काम कर रहे है, क्योंकि बड़े अधिकारियों के काम इन दोनों जूनियर अधिकारियों से करवाए जा रहे हैं। पीडि़त प्रशासनिक अधिकारियों ने अजमेर के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी के समक्ष अपनी पीड़ा का इजहार किया है, लेकिन देवनानी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं। इसलिए किसी भी दखलंदाजी से बचे रहे हैं। देवनानी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे प्रभारी मंत्री की हैसियत से जो सरकारी मीटिंग लेते हैं, उसमें कलेक्टर भी शामिल हो जाती हंै। देवनानी को अच्छी तरह पता है कि यदि कलेक्टर न आए तो वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं। देवनानी पीडि़त अफसरों की मदद करने के बजाए अपनी बैठकों को गरिमा और सम्मान के साथ सम्पन्न करवाने में ज्यादा रुचि रखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि देवनानी एक अनुभवी राजनेता की भूमिका निभा रहे हैं। माना जा रहा है कि दो वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है। इसलिए डॉ. आरुषि मलिक का अजमेर से स्थानांतरण हो जाएगा, लेकिन जानकारों की माने तो कलेक्टर आगामी अप्रैल माह से पहले अजमेर से नहीं जाएंगी। कलेक्टर ने गांवों में शौचालय निर्माण में पूरे प्रदेश में अजमेर को नम्बर वन बना रखा है। ऐसे में 31 मार्च तक कलेक्टर इस अभियान को और आगे तक ले जाएंगी। ऐसा इसलिए हो रहा है ताकि अभियान के अंतर्गत पुरस्कार प्राप्त कर सकें। यह बात अलग है कि सरकार ने दो करोड़ रुपए में से 52 लाख रुपए का भुगतान भी सुलभ शौचालय के लिए किया है। इसे कलेक्टर की प्रशासनिक कुशलता ही कहा जाएगा कि सरकारी धनराशि के अभाव में भी गांव-गांव में शौचालयों का निर्माण कर दिया है। जिन अधिकारियों ने ग्रामीणों की मदद से शौचालय बनवाए हंै, उन्हें पूरी उम्मीद है कि कलेक्टर मलिक अपने प्रभाव से बकाया राशि का भुगतान करवाएंगी। ऐसे अधिकारी भी नहीं चाहते है कि अभी कलेक्टर का तबादला हो जाए तो शौचालयों के निर्माण की राशि खतरे में पड़ सकती है।
(एस.पी. मित्तल) (29-01-2016)
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