Saturday 9 January 2016

राम मंदिर पर सेमिनार का कांग्रेसी और वामपंथी विद्यार्थियों के विरोध के मायने। क्या यह अभिव्यक्ति पर रोक नहीं है।


9 जनवरी को दिल्ली के दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के सभागार में जब राम मंदिर के इतिहास पर एक सेमिनार हो रही थी, तब बाहर कांग्रेस और वामपंथी दलों के विद्यार्थी हंगामा कर रहे थे। विद्यार्थियों के हंगामे की बात बाद में, पहले यह बताना जरूरी है कि इस सेमिनार का डीयू से कोई संबंध नहीं था। अरुधंति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ संस्थान ने डीयू का सभागार किराए पर लेकर सेमिनार का आयोजन किया। डीयू का सभागार राजनीतिक दल भी किराए पर लेते हैं। ऐसे में यह कहना कि डीयू में किसी विचारधारा को हावी किया जा रहा है, उचित नहीं होगा। जहां तक सेमिनार में सुब्रमण्यम स्वामी को बुलाने का सवाल है तो ये वे स्वामी हैं जिन्होंने नेशनल हेराल्ड के मामले में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, उनके पुत्र राहुल गांधी सहित दिग्गज सात कांग्रेसियों पर मुकदमा दर्ज करवाया है। क्या इस मुकदमे को लेकर ही एनएसयूआई के विद्यार्थी स्वामी की उपस्थिति का विरोध कर रहे थे? वामपंथी दलों के छात्र संगठनों में किस विचारधारा के विद्यार्थी होते हैं, वह पूरा देश जानता है। सवाल उठता है कि क्या अब भारत में राम मंदिर के इतिहास, पुरातत्व तथ्य आदि पर सेमिनार भी नहीं हो सकती? बिहार विधानसभा के चुनाव के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर जो लेखक, कलाकार अपने अवार्ड लौटा रहे थे, उन्हें अब बताना चाहिए कि क्या शिक्षाविद् इतिहासकार आदि को किसी सेमिनार में बोलने की आजादी नहीं है? श्रीमती सोनिया गांधी को यह समझना चाहिए कि अयोध्या में बंद पड़े राम मंदिर को उनके पति तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ही खुलवाया था। तब यही भावना थी कि देश का आम नागरिक मंदिर के दर्शन करना चाहता है। एक ओर तो देशवासियों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए राजीव गांधी राम मंदिर खुलवाते हैं तो दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी से जुड़े विद्यार्थी सेमिनार का विरोध करते हैं। क्या सभागार किराए पर लेकर राम मंदिर पर सेमिनार कर लेने मात्र से ही डीयू में कोई विचारधारा थोपी जा रही है? जब हम इस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सभी धर्मों का सम्मान करते हैं तो राम मंदिर पर सेमिनार क्यों नहीं हो सकती? अच्छा होता कि कांग्रेस और वामपंथी दलों के विद्यार्थी डीयू की समस्याओं को लेकर आंदोलन करते। समय पर समेस्टर परीक्षा नहीं होने, शिक्षकों की कमी, सुविधाओं का अभाव आदि समस्याओं से आम विद्यार्थी परेशान है।
(एस.पी. मित्तल)  (09-01-2016)
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