Wednesday 20 January 2016

पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी में 30 छात्रों के सिर में गोली मारकर मौत के घाट उतारा।


हमारे कश्मीर के मुसलमान सबक लें।
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20 जनवरी को पाकिस्तान के पेशावर स्थित बाचा खान यूनिवर्सिटी में 4 आतंकी घुसे और 70 छात्रों के सिर में गोली मार दी। अब तक 30 से भी ज्यादा छात्रों की मौत हो चुकी है और शेष छात्र जीवन के लिए अस्पताल में संघर्ष कर रहे हैं। खूंखार आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है। पेशावर की यूनिवर्सिटी में जिन बेगुनाह और मासूम छात्रों को मौत के घाट उतारा गया वो न तो हिन्दू थे और न ईसाई। सभी छात्र मुसलमान थे। अफसोसनाक बात तो यह है कि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना तीन वर्ष पहले ही खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम से की गई थी और भारत में अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी के नाम से पहचाना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथी रहे उदारवादी अब्दुल गफ्फार को भारत सरकार ने 1987 में भारत रत्न की उपाधि दी थी। 20 जनवरी 1988 को अब्दुल गफ्फार का निधन हो गया। पाकिस्तान में इन्हें बाचा खान के नाम से याद किया जाता है। 20 जनवरी को यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी अपने बाचा खान की ही पुण्यतिथि मना रहे थे। पुण्यतिथि के कार्यक्रम पर आतंकियों को एतराज था। इसलिए आत्मघाती आतंकी यूनिवर्सिटी में घुसे और बाचा खान की पुण्यतिथि मनाने वाले 70 छात्रों के सिर में गोली मार दी। सिर में गोली इसलिए मार दी गई ताकि कोई छात्र बच न पाए। पाकिस्तान की इस ताजा घटना से हमें यह समझना चाहिए कि आखिर आतंकवादी कैसा देश और समाज बनाना चाहते हैं। 20 जनवरी को ही हमारे कश्मीर के पुलवामा में भी फिदायन हमला हुआ। एक तरफ आतंक की ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो दूसरी और कश्मीर के मुसलमान पाकिस्तान में शामिल होने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। कश्मीर में खुलेआम पाकिस्तान जिन्दाबाद और खूंखार आतंकी संगठन आईएस के झंडे लहराए जाते हें। भले ही आईएस ने कश्मीर में अपने पैर मजबूती से न जमाए हों, लेकिन कुछ युवाओ को आईएस के झंडे लहराने में गर्व महसूस होता है। जो लोग कश्मीर के पाकिस्तान में शामिल कराने अथवा आजादी की वकालत करते हैं, उन्हें आज इस बात का जवाब देना चाहिए कि क्या पेशावार की यूनिवर्सिटी में जिन 70 छात्रों के सिर में गोली मारी गई। उनके गुनाहगारों के साथ क्या सलूक किया जाए। इस घटना पर अफसोस जताते हुए खुद पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ ने कहा है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। जब आतंकवादियों को पेशावर की यूनिवर्सिटी में घुसकर विद्यार्थियों को मौत के घाट उतारने में कोई झिझक नहीं है तो यह आतंकवादी कश्मीर के रास्ते से भारत के पंजाब प्रांत में किसी को भी मौत के घाट उतार सकते हैं। 
भारत के पंजाब में लगातार आतंकी वारदातें हो रही हैं और आतंकी पाकिस्तान की सीमा से कश्मीर में घुसकर पंजाब में प्रवेश करते हैं। अभी हाल ही में पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर जो हमला हुआ उसके फिदायन भी कश्मीर से ही आए थे। जिस कश्मीर को स्वर्ग कहा जाता था, वज आज नर्क से भी बदत्तर हो गया है। सेना के जवानों और आतंकियों  के बीच मुठभेड़ होना आम बात हो गई है। कश्मीर से पीट-पीट कर भगाए गए चार लाख हिन्दू दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कश्मीर में जब तक हिन्दू रह रहे थे, तब-तब पर्यटन को भी बढ़ावा मिला हुआ था। अब कश्मीर पूरी तरह अशांत प्रदेश बन रह गया है। 
भारत में है मिलीजुली संस्कृति:
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मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में भले ही आतंकी यूनिवर्सिटी के छात्रों को मौत के घाट उतारे,लेकिन भारत में मिली जुली संस्कृति है। आम मुसलमान और हिन्दू भाई चारे के साथ रहता है। विवाद तभी उत्पन्न होता है जब कुछ कट्टरपंथी अपने स्वार्थों की वजह से जहरीले बयान देते हैं। कई बार तो राजनीति की वजह से हिन्दू-मुस्लिम फसाद हो जाते हैं। अजमेर में तो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू समुदाय के लोग जियारत करने आते हैं। ऐसी संस्कृति दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलेगी। 
(एस.पी. मित्तल)  (20-01-2016)
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