Thursday 7 January 2016

भाजपा को अब महबूबा मुफ्ती को सीएम मानना ही पड़ेगा।



मुश्किलें और बढ़ेंगी। 
मुफ्ती मोहम्मद सईद का 7 जनवरी को 84 वर्ष की उम्र में दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। भाजपा की अब यह मजबूरी होगी कि वह जम्मू कश्मीर में सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती को ही मुख्यमंत्री माने। गत वर्ष मार्च में विधानसभा चुनाव के बाद सईद की पीडीपी और भाजपा के बीच गठबंधन हुआ था और सईद को गठबंधन सरकार का सीएम बनाया गया। सूत्रों की माने तो उस समय भी सईद चाहते थे कि महबूबा ही सीएम बने, लेकिन भाजपा के विरोध के चलते सईद को ही सीएम बनना पड़ा। मार्च 2016 में सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर सईद कश्मीर में जश्न मनाने जा रहे थे और यह माना जा रहा था कि सईद अपनी बेटी और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा को सीएम बनाने की घोषणा करेंगे। हालांकि इन चर्चाओं पर भाजपा की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई थी, लेकिन अब यह भाजपा की मजबूरी होगी कि महबूबा को ही गठबंधन सरकार का सीएम बनाया जाए। 87 सदस्यीय विधानसभा में पीडीपी के 28 और भाजपा के 25 विधायक है, जबकि नेशनल कान्फ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायक हैं। 
अलगाववादियों के प्रति झुकाव:
यूं तो पीडीपी का शुरू से ही कश्मीर के अलगाववादियों को समर्थन रहा है। लेकिन कई मौकों पर महबूबा मुफ्ती ने अलगाववादियों का खुला समर्थन किया है। अलगाववादियों ने जब-जब भी भारत सरकार पर पाकिस्तान से वार्ता का दबाव बनाया, तब-तब महबूबा ने अलगाववादियों की हिमायत की। महबूबा कई बार कह चुकी हैं कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत को पाकिस्तान से वार्ता करते रहना चाहिए। महबूबा का कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति हमेशा नरम रुख सामने आया है। महबूबा 4 लाख विस्थापित हिन्दुओं को फिर से कश्मीर में अपने घरों में बसाने के पक्ष में भी नहीं है। जानकारों की माने तो भाजपा की मुफ्ती मोहम्मद सईद से तो जैसे तैसे निभ गई, लेकिन महबूबा से निभना मुश्किल होगा। मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन कश्मीर की राजनीति पर बड़ा असर डालेगा। विधानसभा में भाजपा के भले ही 25 विधायक हो, लेकिन कश्मीर में वो ही होता है, जो पीडीपी चाहती है। भाजपा की यह राजनीतिक मजबूरी है कि उसे पीडीपी की सरकार चलानी पड़ रही है। 

(एस.पी. मित्तल)  (07-01-2016)
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