Monday 11 January 2016

जरुरत है दरगाह दीवान आबेदीन जैसे जज्बे की। मुस्लिम बहुल्य गांव भकरी में हुआ देश भक्ति का समारोह।


अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल माना जाता है। दुनियाभर के मुसलमान दरगाह में आकर सजदा करते हैं। एशिया महाद्वीप के जितने भी मुस्लिम राष्ट्र हैं उन सब के शासनाध्यक्ष कभी न कभी यहां दरगाह में जियारत के लिए आए है। यही वजह है कि जब कभी दरगाह में छोटी सी भी घटना होती है तो उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर का महत्त्व मिलता है। मुसलमानों के बीच अकीदत वाली ख्वाजा साहब की दरगाह के दीवान और मुस्लिम धर्मगुरु सैय्यद जैनुअल आबेदीन ने 10 जनवरी को राजस्थान के नागौर जिले के भकरी गांव में देश भक्तिपूर्ण एक समारोह आयोजित किया। देश की सीमाओं पर शहीद होने वाले जवानों के परिजनों को सम्मानित करने के लिए हुए इस समारोह में मुझे भी बोलने का अवसर प्रदान किया गया। मैं दीवान साहब और उनके पुत्र व उत्तराधिकारी सैय्यद नसुरुद्दीन का शुक्रगुजार हंूं कि उन्होंने मुझे मंच पर बैठाया और अपनी बात कहने का अवसर दिया। समारोह में मुझसे पहले कारगिल युद्ध के हीरो भारतीय सेना के सर्वश्रेष्ठ कमांडो मेजर दिगेन्द्र कुमार ने कारगिल युद्ध के संस्मरण सुना कर माहौल को देश भक्ति पूर्ण बना दिया था। मुझे ऐसे जोश पूर्ण माहौल में ही बोलने के लिए कहा गया। मैं अपना कथन लिखंू इससे पहले यह बताना चाहता हंू कि भकरी गांव में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। चूंकि दीवान साहब धर्मगुरु भी है इसलिए उनकी एक झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे। स्वाभाविक था कि इस समारोह में मुसलमानों की संख्या अधिक थी, लेकिन मैंने देखा कि जब मेजर दिगेन्द्र कुमार कारगिल के संस्मरण सुना रहे थे, तब सभा में उपस्थित सभी ग्रामीण तालियां बजा रहे थे। मेजर ने जब अपने जोशिले अंदाज में कहा कि मैंने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानियों के छक्के छुड़ा दिए तो ग्रामीणों के चेहरे पर गर्व था। ऐसे देशभक्ति के माहौल् को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा कि देशभक्ति का जो जज्बा दीवान साहब में है, वैसे जज्बे की आज सख्त जरुरत है। 
आंतकवादी वारदात पर कोई मुस्लिम विद्वान मौलवी, उलेमा, मौलाना भले ही आलोचना  न करें, लेकिन दीवान साहब अपनी और से हर बार पहल करते हैं। मैंने कहा कि दीवान साहब ने ही पाकिस्तान और आतंकवाद की खुलकर आलोचना की है। दीवान साहब ने दो टूक शब्दों में कहा है कि इस्लाम धर्म में हिंसा की शिक्षा नहीं दी जाती। कट्टरपंथी लोग जिहाद का गलत अर्थ समझाकर मुस्लिम युवाओं को गुमराह कर रहे हैं। मैंने देखा कि जो बात मैंने दीवान साहब के हवाले से कही उस पर समारोह में उपस्थित सभी लोग सहमत थे। किसी को भी इस बात पर ऐतराज नहीं था कि भारत पाकिस्तान को कड़ा सबक न सिखाए। मेरे बाद दीवान साहब ने भी समारोह को संबोधित किया। देशभक्ति के माहौल को और आगे बढ़ाते हुए दीवान साहब ने कहा कि देश में हो रही आतंकी घटनाओं की निंदा करने के लिए मौलाना, मौलवी मुस्लिम विद्वान आदि को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि अस्पताल में भर्ती मरीज को जब जान बचाने के लिए खून की जरुरत होती है तब कोई भी मरीज यह नहीं पूछता कि खून हिन्दू का है या मुसलमान का है। जब  हर इंसान का खून जान बचाने के काम आता है तो फिर धर्म के नाम पर भेदभाव क्यों किया जाता है? दीवान साहब ने कहा कि देश में ख्वाजा साहब की दरगाह से सकारात्मक संदेश देने के लिए ही उन्होंने हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती एज्युकेशन एवं चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की है। आज जिस प्रकार शहीदों के परिजन का सम्मान किया गया उसी प्रकार भविष्य में भी ऐसे समारोह कर सम्मान किया जाता रहेगा। मुस्लिम ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के जरुरतमंद बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्रस्ट की ओर से भरपुर मदद की जाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि 10 जनवरी को दीवान साहब की ओर से जो जज्बा दिखाया गया, उसकी आज देश में सख्त जरुरत है। न्यूज चैनलों के स्टूडियो में बैठकर विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि सद्भावना की बात तो करते हैं, लेकिन दीवान साहब की तरह जमीन पर सच्चाई नहीं दिखाते। दीवान साहब और उनके उत्तराधिकारी की इस पहल का देशभर में स्वागत किया जाना चाहिए। 

(एस.पी. मित्तल)  (11-01-2016)
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