Wednesday 13 January 2016

राजस्थान की वसुंधरा सरकार के खिलाफ संघ का हिन्दू जागरण मंच जनआंदोलन करेगा।



ऐतिहासिक चित्तौड़ दुर्ग को बचाने की मुहिम।
राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चलने वाली भाजपा की सरकार के कामकाज से संभवत: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी संतुष्ट नहीं है। इसलिए संघ से जुड़े हिन्दू जागरण मंच ने सरकार के खिलाफ जनआंदोलन की चेतावनी दी है। यह जनआंदोलन राजस्थान के चित्तौड़ में स्थापित ऐतिहासिक दुर्ग को बचाने के लिए चलाया जाएगा। मंच के पदाधिकारियों को इस बात का अफसोस हैं कि जिस प्रकार गत कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दुर्ग को नष्ट और कमजोर करने की जो पहल की, उसी पर वसुंधरा सरकार भी चल रही है। बाड़मेर में रिफायनरी, जयपुर में मेट्रो, प्रदेशभर में नि:शुल्क दवा जैसी योजनाओं को दोषपूर्ण बताकर वसुंधरा राजे पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत की आलोचना करती हैं। लेकिन चित्तौड़ के दुर्ग को नष्ट करने के लिए गहलोत ने जो पहल की उसी का अनुसरण राजे भी कर रही हैं। 
राजस्थान हाईकोर्ट ने 25 मई 2012 को भंवर सिंह व अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामलें में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि चित्तौड़दुर्ग की 10 किलोमीटर की परिधि में किसी भी प्रकार का खनन कार्य न हो। इस परिधि में सरकार ने जो खनन पट्टे जारी कर रखे हैं, उन्हें तत्काल प्रयास से रद्द माना जाए और फिर भी यदि कोई खान मालिक खनन कार्य करता है तो उस पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाए। हाईकोर्ट ने माना कि चित्तौड़ का दुर्ग एक हजार वर्ष पुराना है। यह एक राष्ट्रीय धरोहर है, जिसका संरक्षण होना अनिवार्य है। चूंकि तब कांग्रेस की गहलोत सरकार खनन माफियाओं और अनेक सीमेंट फैक्ट्रियों के मालिक बिड़ला ग्रुप के दबाव और लालच में थी इसलिए सरकार के अंतिम दिनों में सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष याचिका दायर कर दी। राजस्थान में भाजपा की सरकार के आने पर यह उम्मीद थी कि चित्तौड़ दुर्ग को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली जाएगी, लेकिन पूरे दो वर्ष गुजर जाने के बाद भी वसुंधरा सरकार ने कांग्रेस सरकार की दायर याचिका को वापस नहीं लिया है। इससे प्रतीत होता है कि खनन माफियाओं और बिड़ला ग्रुप का जो दबाव और लालच गहलोत सरकार पर था, वही अब वसुंधरा सरकार पर भी है। संघ से जुड़े हिन्दू जागरण मंच के पदाधिकारियों को इस बात पर बेहद अफसोस है कि अब वसुंधरा सरकार जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, आरकॉल लॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस की रिपोर्ट को भी जुटा रही है।  
राजे सरकार का तर्क है कि इन संस्थाओं ने दुर्ग को बचाने के लिए खनन कार्य पर जो रिपोर्ट तैयार की है, वह सही नहीं है। इतना ही नहीं मंच के पदाधिकारियों पर वसुंधरा सरकार का दबाव है कि वे बिड़ला ग्रुप के प्रतिनिधियों से वार्ता कर मामले को सुलझाए। लेकिन मंच के प्रतिनिधियों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि चित्तौड़ के ऐतिहासिक दुर्ग के बचाने के लिए कोई समझौता नहीं किया जाएगा। भले ही वसुंधरा सरकार चली जाए। मंच ने स्पष्ट कहा है कि यदि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस नहीं लेती है तो प्रदेशभर में जनआंदोलन किया जाएगा। किसी भी कीमत पर चित्तौड़ के दुर्ग को नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। 
चित्तौड़ दुर्ग का महत्त्व:
चित्तौड़ दुर्ग का ऐतिहासिक महत्त्व ही नहीं है बल्कि यह राजस्थान के साहस वीरता और बलिदान का प्रतीत भी है। यह हमीर सांगा, कुम्भा जैसे वीर राजाआं की राजधानी भी रहा है। 1303ई० में महारानी पद्मनी, 1535 ई० में महारानी कर्मावती तथा 1588 ई० में महारानी फूल कंवर के नेतृत्व में 46 हजार से भी ज्यादा वीरांगनाओं ने जौहर कर शौर्य वीरता और पराक्रम का परिचय दिया है। पन्नाधाय ने 1530ई० में अपने पुत्र चंदन का बलिदान कर स्वामी भक्ति की मिसाल कायम की है। वहीं मीरा ने भक्ति की रसधारा बहाकर इस दुर्ग को शक्ति भक्ति और मुक्ति की ऐतिहासिक धरोहर बनाया है। राजस्थान की मुख्यमंत्री स्वयं उस समुदाय से हैं, जिन्होंने चित्तौड़ के दुर्ग की आन-बान और शान के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी, लेकिन आज वसुंधरा राजे के शासन में ही खान माफिया और बिड़ला औद्योगिक घराने के लोग चित्तौड़ दुर्ग को न केवल ढहाना चाहते हैं, बल्कि इसमें ऐतिहासिक महत्त्व को भी बेच रहे हैं। यदि चित्तौड़ दुर्ग के 10 किलोमीटर के क्षेत्र में खनन कार्य जारी रहा तो यह ऐतिहासिक दुर्ग एक दिन मिट्टी के ढेर में तब्दील हो जाएगा और तब राजस्थान की वीरता, साहस और बलिदान भी दफन हो जाएगा। 
(एस.पी. मित्तल)  (13-01-2016)
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