Friday 16 October 2015

सरकार विरोधियों का डबल रोल।

इधर इस्तीफा, उधर आरटीआई के सम्मेलन में न बुलाने पर नाराजगी।
राजनीतिक नजरिए से स्वयं को प्रगतिशील साहित्यकार, लेखक, आरटीआई कार्यकर्ता, न्यायिक मित्र आदि मानने वालों का 16 अक्टूबर को देश के सामने डबल रोल आया है। केन्द्र सरकार की विफलता को लेकर पिछले कई दिनों से साहित्यकार, लेखक आदि साहित्य अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कारों को लौट रहे हैं। एक और पुरस्कार लौटाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर 16 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित आरटीआई के सम्मेलन में न बुलाए जाने पर ऐसे ही व्यक्तियों ने नाराजगी प्रकट की है। राजस्थान से जुड़ी अरुणा राय, निखिल डे आदि अनेक आरटीआई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि 16 अक्टूबर के सम्मेलन में न बुलाकर आरटीआई का गला घोटने की कोशिश की गई है। इस संबंध में पहली बात तो यह है कि जब इसी विचारधारा के लोग साहित्य पुरस्कार लौटा रहे है, तो फिर इसी केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित सम्मेलन में क्यों जाना चाहते हैं? जब सरकार को विफल ही मान लिया गया है तो फिर उसके सम्मेलन में जाने की भी क्या जरुरत है? इसमें कोई दो राय नहीं की यूपीए के शासन काल में अरुणाराय और निखिल डे जैसे कार्यकर्ताओं ने आरटीआई कानून के लिए लम्बा संघर्ष किया। हालांकि अन्य प्रांतों में अन्ना हजारे जैसे कार्यकर्ता भी लगातार आंदोलन करते रहे। अरुणा राय की भूमिका को देखते हुए ही यूपीए सरकार ने अपनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का सदस्य भी बनाया गया। इस परिषद  अध्यक्ष स्वयं सोनिया गांधी थी। अरुणा राय के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं को भी अनेक सम्मान यूपीए सरकार से मिले हैं।
अब यदि एनडीए की सरकार में अरुणाराय और निखिल डे को किसी सम्मेलन में नहीं बुलाया जा रहा है तो इसमें नाराजगी की क्या बात है? क्या अब उन लोगों को नहीं बुलाया जाना चाहिए जो पिछले कई वर्षों से उपेक्षित रहे? क्या प्रगतिशील होने का ठेका कुछ ही लोगों ने ले रखा है? समाज में जागरुकता के लिए अनेक लोग सक्रिय रहते है। कुछ लोगों को सत्ता से नजदीकियों की वजह से सरकारी पद हासिल हो जाते हैं, जबकि अनेक लोग समाज सुधार में सक्रिय रहते हैं। 16 अक्टूबर को आयोजित आरटीआई सम्मेलन में किसे बुलाया और किसे नहीं, यह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। जितना यह है कि आखिर केन्द्र सरकार की मंशा क्या है? स्वयं को प्रगतिशील और समाज का प्रहरी मानने वाले लगातार यह प्रोपेगंडा कर रहे थे कि नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आरटीआई कानून का महत्त्व कम करना चाहती है। लेकिन 16 अक्टूबर को आरटीआई सम्मेलन में पीएम मोदी ने जो कहा वह आरटीआई कानून को और मजबूत करने वाला है। मोदी ने कहा कि इस कानून का मकसद सिर्फ सूचना लेना ही नहीं बल्कि सुशासन देना भी होना चाहिए। उन्होंने आरटीआई कानून की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस कानून से गांव का एक व्यक्ति पूरे गांव की दशा सुधार सकता है। उनका प्रयास है कि सरकार की हर योजना पारदर्शी हो। मोदी के बयान से यह बात तो साफ हो गई है कि देश में आरटीआई कानून को और मजबूती मिलेगी।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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