Tuesday 13 October 2015

क्या राजनीतिक नजरिए से लौटाए जा रहे हैं साहित्य अकादमी के पुरस्कार

विवादास्पद लेखक सलमान रश्दी ने भी भारत की साहित्य अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार को लौटा दिया है। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने भी पुरस्कार लौटा दिया। अब क्षेत्रीय लेखकों के द्वारा भी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि अब तक कोई 21 लेखकों ने पुरस्कार लौटा दिए हैं। इन लेखकों का आरोप है कि लिखने की आजादी पर संकट आने की वजह से साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाए जा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर किस लेखक को लिखने से रोका गया है? देश में तो इतनी स्वतंत्रता है कि खुर्शीद कसूरी ने जो पुस्तक पाकिस्तान में बैठ कर लिखी, उस पुस्तक की लॉचिंग भारत के मुम्बई में हुई है। जब हम पाकिस्तान की पुस्तक की लॉचिंग अपने देश में करा सकते हैं, तो अपने देश के लेखकों को लिखने से कैसे रोक सकते हैं? कोई एक लेखक बताए कि उसे केन्द्र की भाजपा सरकार के किस मंत्री अथवा नेता ने लिखने से रोका है। हम सब जानते हैं कि देश में लिखने और बोलने की आजादी की वजह से ही भारतीय चैनलों पर पाकिस्तान के प्रतिनिधियों को बैठाकर भारत की खुली आलोचना की जाती है। आज कौनसा लेखक अथवा पत्रकार पीएम नरेन्द्र मोदी की आलोचना करने में कंजूसी कर रहा है। बात-बात पर मोदी से जवाब मांगा जाता है। चाहे मन की बात हो अथवा विदेश दौरे की। हमारा मीडिया कोई रियायत नहीं करता है। देश के एक दो प्रांतों में लेखकों की हत्या हुई है और कुछ प्रांतों में पत्रकारों पर हमले हुए है, जो लेखक अपना पुरस्कार लौटा रहे हैं, वे बताएं कि इसमें केन्द्र  सरकार अथवा साहित्य अकादमी का क्या दोष है?
कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों की है, यदि किसी पत्रकार अथवा लेखक पर हमला हो रहा है तो लेखकों को संबंधित प्रांतीय सरकार के खिलाफ नाराजगी जतानी चाहिए। मैं कोई नरेन्द्र मोदी की सरकार की हिमायत नहीं कर रहा हंू,लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि एक राजनीतिक षडय़ंत्र के तहत कुछ  लेखक साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटा रहे हैं। पूरा देश जानता है कि साहित्य अकादमी के पुरस्कार किस प्रकार से बांटे जाते हैं। इस देश में 50-55 वर्ष तक कांग्रेस और कांग्रेस की सरकार को चलाने वाले क्षेत्रीय दलों का शासन रहा है। जिन लेखकों को पुरस्कार मिले हैं उनकी पृष्ठभूमि की जांच करवाई जाए तो पता चल जाएगा कि किस नजरिए से पुरस्कार लौटाए जा रहे हैं। उम्मीद तो यह की जाती है कि लेखक और पत्रकार अपने देश की एकता और अखंडता के लिए लेखन करें, लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ लोग अपने राजनीतिक नजरिए से काम कर रहे हंै। असल में उन लोगों को खतरा उत्पन्न हो गया है जो तिकड़में लगाकर साहित्य अकादमी के पुरस्कार प्राप्त करते रहे हैं। क्या हम नहीं जानते कि सत्ता से नजदीकियां बढ़ाकर पत्रकार और लेखक क्या-क्या प्राप्त नहीं करते। क्या हमारे देश के लेखकों और पत्रकारों को ऐसा लेखन नहीं करना चाहिए जो देश में सद्भावना को बढ़ावा देता हो? आज भारत जिन विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहा है, इसमें यदि माहौल को और बिगाडऩे वाले काम होते हैं, तो हालात बेकाबू हो जाएंगे।
13 अक्टूबर को देश में दो ऐसी महत्त्वपूर्ण घनाएं हुई है, जिनका असर दूरगामी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि क्या देश में समान नागरिक आचार संहिता लागू करना चाहता है? कोर्ट के सामने ईसाई समुदाय के एक परिवार के तलाक का मामला आया है। जो कानून इस देश के हिन्दुओं पर लागू होता है,उसमें पति-पत्नी का एक वर्ष तक अलग रहने पर तलाक हो सकता है। लेकिन वहीं ईसाई धर्म के अनुसार पति-पत्नी के दो वर्ष तक अलग रहने पर तलाक हो सकता है। केन्द्र सरकार को चार सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट के सवाल का जवाब देना है। जो लेखक अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, उनमें क्या इतनी हिम्मत है कि वे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का माहौल बनाए। इसी प्रकार यूपी के ताकतवर मंत्री आजम खान ने कहा है कि यदि दादरी कांड में उन्हें यूएन जाने से रोका गया तो मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। आजम ने अपनी इस बात से सीएम अखिलेश यादव को भी अवगत करा दिया गया है। केन्द्र सरकार ने अभी तक भी आजम के यूएन में जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हमारे देश के लेखक और पत्रकार इससे ज्यादा और क्या आजादी चाहते हैं।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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