Saturday 3 October 2015

तो इसलिए मुहावरा बना बहती गंगा में हाथ धोने का

सितम्बर 2015 के अंतिम दो दिन मुझे हरिद्वार में बिताने का अवसर मिला। मेरे साथ मेरे मित्र रमेश चंदीराम भी रहे। रमेश भाई बेहद ही धार्मिक प्रवृति के हैं। इसलिए दोनों दिन प्रात:काल मोक्षदायिनी गंगा में डुबकी लगाई और शाम को हर की पौडी पर महाआरती में भाग लिया। 53 वर्ष की उम्र में यह पहला अवसर रहा, जब मैंने गंगा नदी के किनारे बैठकर मंथन किया। महाआरती से पहले कोई 2 घंटे तक घाट पर बैठा रहा और गंगा के बहते पानी को देखता रहा। मैं बचपन से बहती गंगा में हाथ धोने का मुहावरा सुनता आ रहा हूं लेकिन इस मुहावरे का सही अर्थ मेरे समझ अब आया है। किताबों में इस मुहावरे का जो अर्थ लिखा है, वह किताबी ज्ञान हो सकता है, लेकिन इस मुहावरे का कोई साधारण अर्थ नहीं है। असल में मोक्षदायनी गंगा तो अनवरत बह रही है। यह हाथ धोने वाले पर निर्भर है कि उसने किस मंशा से हाथ धोए हैं। कुछ लोग कहते हैं कि गंगा नदी सबके पाप धोती है। जो व्यक्ति गंगा में डुबकी लगा ले, उसके पाप धुल जाते हैं। यह धार्मिक मान्यता और विश्वास हो सकता है। लेकिन उनका क्या जो गंगा में पाप करने के लिए ही प्रार्थना करते हैं। ऐसा नहीं की सभी लोग अपने पापों का प्रायश्चित करने आते हैं। सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं जो प्रायश्चित के बजाए अपने पापों पर पर्दा डलवाने के लिए डुबकी लगाते हैं। माँ गंगा यह नहीं देखती कि किसके माथे पर क्या लिखा है, लेकिन गंगा माँ हर व्यक्ति के मन को समझती है। जो लोग बहती गंगा में हाथ धोने को मुहावरा मानते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि माँ गंगा ऐसे ही हाथ लगाने नहीं देती है। गंगा नदी तो अपने प्रवाह से अन्नतकाल से बह रही है। लोग अपने-अपने नजरिए से गंगा नदी में हाथ धो रहे हैं। मैं यहां गंगा के धार्मिक और पौराणिक महत्व की जानकारी नहीं दे रहा क्योंकि इसके बारे में भारतीय संस्कृति में भरोसा रखने वाले सब लोग जानते हैं। मैंने घाट पर बैठकर जो मंथन किया, उसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि गंगा नदी आने वाले हर व्यक्ति के बारे में जानती है। झूठे और सच्चे व्यक्ति के बारे में गंगा को सब पता है। उसे यह भी पता है कि कौन प्रायश्चित करने आया है और कौन अपने पापों पर पर्दा डालने आया है।
घाट पर हो इंतजाम:
पति-पत्नी के एक साथ गंगा में डुबकी लगाने से ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मान्यता के चलते गंगा के घाटों पर महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि मुख्य हर की पौडी पर महिला-पुरुष एक साथ नहाते हैं। लेकिन महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी कपड़े बदलने समय होती है। अधिकांश महिलाएं तो गीले कपड़ों में ही अपनी धर्मशाला अथवा होटल में जाती हैं। जिन महिलाओं को स्नान के बाद पूजा करनी होती है, उन्हें विपरित परिस्थितियों में घाट पर ही कपड़े बदलने होते हैं। हालांकि श्री गंगा सभा का दावा है कि श्रद्धालुओं के लिए अनेक सुविधाएं जुटाई गई हैं। मैं दो दिन कई घंटों तक हर की पौडी और अन्य घाटों पर बैठा रहा, लेकिन मुझे श्री गंगा सभा की सुविधाएं देखने को नहीं मिली। महाआरती से पहले और बाद में भी सभा के नियुक्त व्यक्ति आर्थिक सहयोग के लिए चिल्लाते रहे। जब घाटों पर भीड़ जमा होती, तब सभा से जुड़े व्यक्ति 100-100 रुपए की रसीद काटते देखे गए। यह माना कि महाआरती और अन्य धार्मिक कार्यों में खर्चा होता है, लेकिन यदि हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं के लिए और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं तो गंगा सभा की उपयोगिता ज्यादा होगी। कम से कम हर की पौडी और भीड़ वाले अन्य घाटों पर महिलाओं के लिए कपड़े बदलने का सुरक्षित स्थान होना ही चाहिए।

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