Wednesday 14 October 2015

कलेक्टर बड़ी या सरकार।

अजमेर कलेक्ट्रेट में नहीं आना चाहता कोई आरएएस।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में वैसे तो जनता द्वारा चुनी गई सरकार ही बड़ी होती है और सरकार में काम करने वाले अफसरों को सर्वेंट माना जाता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर में जिला कलेक्टर आरुषि मलिक सरकार से ज्यादा बड़ी हंै। भले ही कलेक्ट्रेट का हाल कितना भी बुरा हो, लेकिन होता वहीं है जो कलेक्टर चाहती हैं। कलेक्ट्रेट के बिगड़े रवैये की वजह से कोई भी आरएएस अधिकारी यहां आना नहीं चाहता। यही वजह है कि तबादला होने पर जो पद रिक्त हो गया, वह आज तक भी रिक्त पड़ा है। जो अधिकारी वर्तमान में मजबूरी में काम कर रहे हैं, वे या तो अपना तबादला चाहते हैं या फिर कलेक्टर के तबादला होने का इंतजार कर रहे हैं। पूर्व में प्रोटोकॉल अधिकारी राष्ट्रदीप यादव, अतिरिक्त कलेक्टर द्वितीय बी.एल.मीणा तथा सहायक कलेक्टर के तबादले के बाद आज तक भी यह तीनों महत्त्वपूर्ण पद रिक्त पड़े हैं। कलेक्टर मलिक ने जिला परिषद के एसीओ जगदीश चंद हेड़ा को अतिरिक्त कलेक्टर द्वितीय का काम सौंप दिया। जिला परिषद के सीईओ राजेश चौहान के विदेश यात्रा पर चले जाने की वजह से हेड़ा के पास सीईओ के पद का काम भी आ गया। यानि हेड़ा एक साथ तीन अधिकारियों के पद पर काम कर रहे हैं, लेकिन कोढ़ में खाज तब हुआ जब सरकार ने दो दिन पहले हेड़ा का तबादला नाथद्वारा स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर के ट्रस्ट के सीईओ के पद पर कर दिया। हेड़ा अब एक दिन भी जिला परिषद और कलेक्ट्रेट में काम करने के इच्छुक नहीं हैं। हेड़ा के चले जाने पर एक साथ तीन पद रिक्त हो जाएंगे। सवाल उठता है कि जिस अधिकारी के तबादले पर पद रिक्त होता है, उस पद पर सरकार नियुक्ति क्यों नहीं करती? असल में कलेक्ट्रेट के बिगड़े हालातों में कोई भी आरएएस आना ही नहीं चाहता। कलेक्टे्रट में जिस तरह से आरएएस अफसरों के काम को एक दूसरे में बांटा जाता है, उससे हालात और बिगड़े हैं। बताया जा रहा है कि एक वरिष्ठ आरएएस तो छुट्टी पर ही चले गए हैं।  मलिक कलेक्टर की कुर्सी पर आकर कब बैठेंगी, इसकी भी कोई जानकारी नहीं होती है। कार्यरत किसी भी अधिकारी में इतनी हिम्मत नहीं है कि कलेक्टर की गैर मौजूदगी में पीडि़त व्यक्ति को राहत प्रदान कर दे। कलेक्टर की गैर मौजूदगी में अधिकारी जनसमस्याओं के ज्ञापन तो ले लेते हैं, लेकिन समाधान का कोई आश्वासन नहीं दे पाते। बेचारे पीडि़त लोग कलेक्टर के इंतजार में घंटों कलेक्ट्रेट परिसर में बैठे रहते हैं। यंू कहने को राजनीतिक दृष्टि से अजमेर जिला मजबूत स्थिति में है। सांसद सांवरलाल जाट केन्द्र में मंत्री हैं, तो जिले के आठ विधायकों में से सात सत्तारुढ़ भाजपा के हैं। इतना ही नहीं शहर के दोनों विधायक वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल स्वतंत्र प्रभार की मंत्री हैं। देवनानी तो अजमेर जिले के ही प्रभारी मंत्री हैं। कलेक्ट्रेट के बिगड़े हालातों के बारे में देवनानी ने सीएम वसुंधरा राजे को भी अवगत कराया है, लेकिन इसके बावजूद भी कलेक्टे्रट के हालत सुधरे नहीं हैं। मजे की बात तो यह है कि जनप्रतिनिधियों की नाराजगी के बाद कलेक्टर को ही अजमेर के संभागीय आयुक्त के पद का अतिरिक्त चार्ज भी दे दिया गया है। धर्मेन्द्र भटनागर को रिटायर हुए एक पखवाड़ा गुजर गया, लेकिन सरकार ने नए संभागीय आयुक्त की नियुक्ति नहीं की है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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