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शराब बुरी चीज है और इसके कारोबार से होने वाली आय से घर परिवार में बुराईया भी आती हैं। इस बात को समझाने के लिए सरकारें विज्ञापन पर करोड़ों रुपया खर्च करती हंै। इन विज्ञापनों में बताया जाता है कि शराब के सेवन से किस प्रकार घर परिवार बर्बाद हो जाते हैं। सरकार के विज्ञापनों का कितना असर होता है, यह तो प्रतिवर्ष बढ़ रही शराब की बिक्री से लगाया जा सकता है, लेकिन अजमेर के आबकारी अधिकारी दाताराम ने एक ही झटके में शराब बुरी है का प्रभावी प्रचार कर दिया है। असल में 9 मार्च को प्रदेशभर में शराब की दुकानों के आवंटन की प्रक्रिया होनी है। स्वाभाविक है कि दाताराम के रिश्तेदारों ने भी आवेदन किया होगा और अब दाताराम से दुकान आवंटन के लिए सिफारिश चाहते हैं। हालांकि दुकानों का आवंटन लॉटरी से होगा। इसमें सिफारिश की गुंजाइश कम है। रिश्तेदारों को समझाने के लिए ही दाताराम ने एक शानदार मैसेज भेज दिया। वाट्स-एप पर भेजे गए इस मैसेज में दाताराम ने कहा कि शराब बहुत बुरी चीज है और इसका कारोबार तो और भी बुरा है। शराब की आय से घर परिवार में अनेक बुराईया आ जाएगी। यदि दुकान मिल भी जाए तो फिर रोज-रोज परेशानी होगी। बेवजह मुकदमे दर्ज होंगे।
समाज में शराब के कारोबारी को अच्छी निगाह से नहीं देख जाता है। दाताराम का मकसद अपने रिश्तेदारों को हतोत्साहित करना था। लेकिन दाताराम का यह मैसेज चोरी हो गया और अखबार वालों तक पहुंच गया। बस फिर क्या था। 3 मार्च को अजमेर के सभी दैनिक समाचार पत्रों में दाताराम की ऐसी-तैसी की गई। कहा गया कि जब सरकार शराब से आय बढ़ाने में लगी हुई है, तब दाताराम का यह कृत्य सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाला है। हो सकता है कि अखबारों में खबरे छपने के बाद दाताराम पर अनुशासन हीनता की कार्यवाही भी हो जाए। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर दाताराम ने क्या गलती कर दी। शराब बुरी है, यह बात तो सरकार भी कहती है। शराब का कारोबार बुरा है, यह बात हर व्यक्ति कहता है। अच्छा हो कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दाताराम को अपने पास बुलाएं और बुरी बात को बुरा कहने के लिए सम्मानित करें। यह बात कोई मायने नहीं रखती, जब शराब बुरी है तो दाताराम अजमेर के अबकारी अधिकारी क्यों बने बैठे हैं? सरकारी नौकरी अपनी जगह है और अपनी सोच अपनी जगह।
(एस.पी. मित्तल) (03-03-2016)
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