Sunday 27 March 2016

विधानसभा में बहुमत से पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का फैसला कितना उचित। क्या भाजपा भी कांग्रेस की तरह चलाएगी लोकतंत्र।


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सवाल यह नहीं है कि 27 मार्च को केन्द्र की भाजपा सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया। सवाल यह है कि यदि केन्द्र में कांग्रेस की और उत्तराखंड में भाजपा की सरकार होती तो भाजपा के नेता खासकर नरेन्द्र मोदी क्या प्रतिक्रिया देते? उत्तराखंड के राज्यपाल ने जब हरीश रावत को 28 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने का समय दिया था, तब 27 मार्च को ही हरीश रावत की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू क्यों किया गया? अब केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली तर्क दे रहे हैं कि उत्तराखंड में विधायकों की खरीद-फरोख्त से संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था और विधानसभा में विनियोग बिल के फेल हो जाने के बाद 1 अप्रैल से वित्तीय संकट भी खड़ा हो जाता। ऐसे में जेटली के तर्क अपनी जगह हैं, लेकिन  सवाल उठता है कि जब अगले दिन यानि 28 मार्च को विधानसभा में हरीश रावत को बहुमत सिद्ध करना था तो फिर अचानक बर्खास्तगी का निर्णय क्यों किया गया। क्या भाजपा को अपने 27 विधायकों पर भरोसा नहीं था? जब कांग्रेस के 9 विधायक बगावत कर भाजपा के खेमे में आ गए थे, तो 28 मार्च को जब सदन में बहुमत की बात आती तो भाजपा का पलड़ा भारी होता। लेकिन बहुमत को विधानसभा में तोलने से पहले ही केन्द्र सरकार ने अपने अधिकारों के तहत धारा 356 का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। यह माना कि उत्तराखंड के विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के 9 विधायकों की सदस्यता रद्द कर और संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया था। लेकिन लोकतंत्र में यदि बहुमत का फैसला विधानसभा में होतो ज्यादा उचित होता, जहां तक सीएम हरीश रावत के स्टिंग ऑपरेशन का सवाल है तो राजनीति में ऐसा होता ही रहता है। यह कोई नई बात नहीं है कि जब सीएम अपनी सरकार बचाने के लिए बागी विधायकों से सौदेबाजी कर रहा हो और फिर हरीश रावत तो सौदेबाजी के पुराने उस्ताद रहे हैं। यही कारण रहा कि गत 23 मार्च को जो हरीश रावत 15-15 करोड़ रुपए में विधायकों को खरीद रहे थे, वो ही हरीश रावत बर्खास्तगी के बाद 27 मार्च को मासूमियत के साथ कह रहे हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने लोकतंत्र की हत्या कर दी है। कोई हरीश रावत से यह पूछे कि 23 मार्च को वे स्वयं लोकतंत्र के साथ क्या कर रहे थे? असल में सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की दोनों ही अपने नजरिए से लोकतंत्र को चला रहे हैं। भाजपा को यह पता था कि 28 मार्च को विधानसभा में जब हरीश रावत बहुमत होने पर मतदान करवाएंगे तब विधानसभा अध्यक्ष उन 9 विधायकों को बाहर निकलवा देंगे, जिन्होंने हरीश रावत के साथ धोखा किया है। विधानसभा में कांग्रेस के 27  और भाजपा के 28 विधायक हैं। भाजपा का एक विधायक पहले ही बगावत कर चुका है। भाजपा को अपने 27 विधायकों में भी बगावत की बू आ रही थी, इसलिए अनेक तर्क देते हुए केन्द्र सरकार ने 27 मार्च को ही उत्तराखंड की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। पहले अरुणाचल प्रदेश और अब उत्तराखंड पर अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा का शासन हो गया है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में हिमाचल प्रदेश की बली हो जाए। भाजपा के युवा सांसद और बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर की आंख में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार किरकिरी बनी हुई है। 

(एस.पी. मित्तल)  (27-03-2016)
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