Tuesday 1 March 2016

देवीशंकर भूतड़ा शिवजी की परीक्षा में पास।



नीलकंठ महादेव तीर्थ स्थल पर जमा हुए हजारों श्रद्धालु।
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अजमेर जिले के ब्यावर शहर के निकट पहाड़ी क्षेत्र में बने नीलकंठ महादेव तीर्थस्थल के जीर्णोद्धार पर पांच दिवसीय महोत्सव मनाया गया। महोत्सव का समापन 28 फरवरी को हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में हुआ। पहले जीर्णोद्धार और फिर महोत्सव का काम चुनौतीपूर्ण था। एक तरह से यह आयोजकों की परीक्षा थी। पूरा ब्यावर क्षेत्र जानता है कि नीलकंठ महादेव तीर्थस्थल के विकास में पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। जब यहां सिर्फ भगवान शिव का मंदिर ही था तब यह क्षेत्र वीरान पड़ा हुआ था। एक तरह से जंगल था, लेकिन विधायक बनने के बाद भूतड़ा ने इस क्षेत्र के विकास में कोई कमी नहीं रखी और आज जो विशाल स्वरूप नजर आ रहा है उसमें भूतड़ा की ही मेहनत रही है। इसमें कोई दोराय नहीं कि भूतड़ा ने ब्यावर शहर के संपन्न परिवारों को जोड़ कर तीर्थस्थल के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। 28 फरवरी को जब महोत्सव का समापन हुआ तो हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे। सभी ने एक स्वर से भूतड़ा की मेहनत की प्रशंसा की वहीं भूतड़ा का यह कहना रहा कि यदि ब्यावर के लोगों का सहयोग नहीं मिलता तो नीलकंठ महादेव तीर्थ का विकास संभव नहीं था।
धर्म का अनुसरण जरूरी
समारोह में निम्बार्क पीठ के युवाचार्य रामशरण महाराज ने कहा कि धर्म का अनुसरण करना जरूरी है। समारोह में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज समाज में अनेक कुरीतियां आ गई है, जिनकी वजह से धर्म की भावना कम हो गई है। उन्होंने कहा कि धर्म की शिक्षा ही एक ऐसा रास्ता है जो मनुष्य को बुराईयों से बचाता है। उन्होंने नीलकंठ महादेव तीर्थ स्थल के जीर्णोद्धार के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह धर्म का प्रचार ही है। उन्होंने कहा कि आज उपभोक्तावादी संस्कृति की वजह से देश के जो हालात है, उसमें धर्म की हमारे देश को बचा सकता है। 
चौहान वंश का है इतिहास :
नीलकंठ महादेव तीर्थ स्थल से भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशजों का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। मगरा क्षेत्र से जुड़े इस धार्मिक स्थल का विकास भी परम्परागत तरीके से किया गया है। यहां वैष्णो देवी तीर्थ से लाई गई पिण्डियां भी रखी गई है तथा माता का आकर्षक मंदिर भी बनाया गया है। पहाड़ी क्षेत्र पर ही भैरवनाथ का स्थान भी निर्धारित किया गया है। यानि माता वैष्णो देवी और भगवान शिव के धार्मिक स्थलों को इस तरह विकसित किया गया है ताकि ब्यावर शहर के साथ-साथ आसपास के मगरा क्षेत्र के ग्रामीण भी यहां आ सके। 28 फरवरी को रावत समाज के अधिकांश धर्मगुरु समारोह में मौजूद थे। इसे भूतड़ा की सूझबूझ ही कहा जाएगा कि उन्होंने रावत समाज के सभी प्रमुख धर्मगुरुओं का सत्कार करने के साथ-साथ शहरी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी मान-सम्मान किया। जिस किसी ने भी जीर्णोद्धार के काम में सहयोग किया, उन सभी को भूतड़ा ने मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। यह कहा जा सकता है कि भूतड़ा भगवान शिव की परीक्षा में पास हो गए। नवरात्र के दिनों में जहां माता के मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है वहीं सावन में नीलकंठ महादेव के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
धर्मगुरुओं ने दिया आशीर्वाद :
महोत्सव के दौरान रामस्नेही सम्प्रदाय के जगतगुरु स्वामी रामदयाल जी महाराज और रावतों के सभी धर्मगुरुओं ने भूतड़ा को आशीर्वाद दिया। रामदयाल जी महाराज ने तो कहा कि भूतड़ा ने शहर और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जोड़कर धर्मप्रचार का जो कार्य किया है वह अनोखा है। इसी प्रकार रावत समाज के प्रमुख धर्मगुरुओं ने कहा कि हमारे इतिहास के तीर्थ स्थल को निखारने और प्रसिद्ध करने में भूतड़ा की ही भूमिका है। 

 (एस.पी. मित्तल)  (28-02-2016)
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