Sunday 20 March 2016

वल्र्ड सूफी फोरम ने माना कि इस्लाम का आतंक से कोई ताल्लुक नहीं है।


तो फिर भारत में आतंकी वारदातें क्यों हो रही हैं?
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20 मार्च को दिल्ली में चार दिवसीय वल्र्ड सूफी फोरम का समापन हो गया। फोरम के प्रथम दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी बात रखी तो समापन सुप्रसिद्ध सूफी विद्वान डॉ. ताहीर-उल-कादरी के संबोधन से हुआ। फोरम में दुनिया भर के मुस्लिम विद्वानों ने भाषण दिए। फोरम का यह निष्कर्ष निकला कि इस्लाम धर्म का आतंकवाद से कोई ताल्लुक नहीं है। सवाल उठता है कि जब इस्लाम में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है तो फिर भारत में रोजाना आतंकवादी वारदातें क्यों होती है?
20 मार्च को डॉ. कादरी ने मुस्लिम धर्म की पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान आतंकवाद को सूफीवाद से ही समाप्त किया जा सकता है। कादरी ने भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी को भी समाप्त करने की बात कही। इसमें कोई दो राय नहीं कि डॉ. कादरी अपने वतन पाकिस्तान में भी कट्टरपंथियों के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। पाकिस्तान के मुसलमानों में डॉ. कादरी के प्रति आदर भाव है। लेकिन पाकिस्तान में रह कर सूफीवाद का झंडा उठाने पर कादरी भी कट्टर पंथियों के निशाने पर हैं। इसलिए कादरी ने कहा कि आतंकवाद से भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान भी पीडि़त है। देश दुनिया में जो लोग सूफीवाद पर चल कर अमन की बात करते हैं, उनका यह भी फर्ज है कि वे आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोले और उन सभी शक्तियों को मजबूत करे जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ रही हैं। यह माना कि मुस्लिम राष्ट्र होने के बाद भी पाकिस्तान में आए दिन आतंकी वारदातें हो रही हैं, लेकिन पाकिस्तान के मुकाबले भारत में हालात भिन्न हैं। भारत में जब आतंकी वारदात होती है तो सभी मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जाता है, जबकि ऐसा है नहीं। समझने की बात यही है कि जब पाकिस्तान में आईएस जैसे आतंकी मुसलमानों को ही मौत के घाट उतारने से कोई झिझक नहीं दिखाते तो भारत में तो आतंकी वारदात करने में ज्यादा आनंद आता है। जो लोग अपने नजरिये से हर बार इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ देते हैं, उन्हें भी यह समझना चाहिए कि सूफीवाद से जुड़े मुसलमान आतंकवाद से नाराज है। यानि आतंकवाद का मुकाबला सूफीवाद से भी किया जा सकता है। दिल्ली में जिन मुस्लिम नेताओं ने वल्र्ड सूफी फोरम का आयोजन किया, वह वाकई बधाई के पात्र हैं।  भारत में इस फोरम का आयोजन होने से कम से कम यह संदेश तो गया है कि सारे मुसलमान आतंकवाद के साथ नहीं है। चार दिवसीय इस फोरम में जिस तरह से आतंकवाद की आलोचना की गई, उससे दुनिया में आशा की एक किरण नजर आई है। नि:संदेह गैर मुसलमान की सोच भी बदलनी चाहिए। खुद मुस्लिम विद्वानों ने फोरम में स्वीकार किया कि आतंकवाद से सबसे ज्यादा कोई पीडि़त है तो वह इस्लाम धर्म है। कुछ लोगों ने जिहाद का अर्थ गलत निकाला है और मुस्लिम युवओं को गुमराह कर आतंकी बना रहे हैं।  भारत के अंदर जो आतंकवाद के हालात है उसका भी सूफीवाद को आगे कर मुकाबला किया जा सकता है। अच्छा हो कि जब कभी भारत तें आतंकी वारदात  हो तो सूफीवाद से जुड़े मुसलमान आतंकियों के सामने खड़े हो जाएं। जब तक आतंकवाद को सूफीवाद से  कड़ा जवाब नहीं दिया जाएगा,तब तक सूफीवाद पर भी आतंकवाद हावी रहेगा।

(एस.पी. मित्तल)  (20-03-2016)
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