Saturday 5 March 2016

नरेन्द्र मोदी के बदल जाने से दु:खी है देशभर के सर्राफा व्यापारी।



सेन्ट्रल एक्साइज का मतलब दीमक लगना।
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5 मार्च को देशभर के सर्राफा व्यापारी चौथे दिन भी हड़ताल पर रहे। यानि देशभर में सोने चांदी की एक भी दुकान नहीं खुली। व्यापारियों को एक प्रतिशत सेन्ट्रल एक्साइज लगने का जितना दुख नहीं है उतना दु:ख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बदल जाने का है। व्यापारियों का कहना है कि जब केन्द्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चल रही थी तब वर्ष 1912 में तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने सोने पर एक प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी लगाने की घोषणा की थी। उस समय भी देशभर के सर्राफा व्यापारियों ने बेमियादी हड़ताल की। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने तब सोने पर सेन्ट्रल एक्साइज लगाने का खुला विरोध किया। उस समय मोदी ने कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सर्राफा व्यापारियों को सेन्ट्रल एक्साइज के जाल में नहीं फंसाना चाहिए। इतना ही नहीं तब संसद में भाजपा के सांसद और पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सर्राफा व्यापारियों का समर्थन किया। तब यशवंत सिन्हा ने भी कहा कि सवाल एक प्रतिशत ड्यूटी लेने का नहीं है बल्कि जिस प्रकार सेन्ट्रल एक्साइज के अधिकारी इसकी आड़ में व्यापारियों को तंग करेंगे उसका है। देशव्यापी विरोध को देखते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार को सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी वापस लेने का फैसला करना पड़ा।
दो वर्ष पहले केन्द्र में जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी तो सर्राफा व्यापारी निश्चिंत थे कि अब 5 वर्ष सेन्ट्रल एक्साइज की तलवार उनके गले पर नहीं चलेगी, लेकिन नरेन्द्र मोदी के केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने दूसरे ही बजट में सर्राफा व्यापारियों की गर्दन पर सेन्ट्रल एक्साइज की तलवार रख दी है। जेटली ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए जो बजट की घोषणा की है उसमें सोने पर एक प्रतिशत सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी लगाने की बात कही है। सभी व्यापारियों को आगामी 31 मार्च तक इसके लिए आवेदन भी करना होगा। सर्राफा व्यापारियों के अब यह समझ में नहीं आ रहा कि जब वर्ष 2012 में नरेन्द्र मोदी ने इसी ड्यूटी का विरोध किया था तो प्रधानमंत्री बनने के बाद अब वही ड्यूटी क्यों लगाई जा रही है। व्यापारी जो भी टेक्स देता है उसकी भरपाई ग्राहक से ही की जाती है। ऐसे में सर्राफा व्यापारियों को भी सोने पर एक प्रतिशत टेक्स देने में कोई एतराज नही है। सरकार चाहे तो बिक्री कर, आय कर आदि के माध्यम से एक प्रतिशत टेक्स की वसूली कर सकती है, लेकिन व्यापारी सेन्ट्रल एक्साइज का दखल नहीं चाहते है। व्यापारियों का कहना है कि 1962 में तत्कालीन सरकार ने गोल्ड कंट्रोल एक्ट लागू किया था। इसके अंतर्गत सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी भी लगाई गई। देश में यह टेक्स 1991 तक लगा रहा। पुराने सर्राफा व्यापारी बताते है कि सेन्ट्रल एक्साइज में इनकम टेक्स, सेल्स टेक्स आदि विभागों से भी बड़े-बड़े मगरमच्छ बैठे हुए है जो आदमी तक को जिंदा हजम कर जाते है। जिन सर्राफा व्यापारियों में 1962 से 1991 तक सेन्ट्रल एक्साइज को भुगता है उनका कहना है कि ड्यूटी एक दीमक की तरह है। इस विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर चीफ कमिश्नर तक चाटने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। जिस प्रकार दीमक लकड़ी को खोखला कर देती है उसी प्रकार सेन्ट्रल एक्साइज की वजह से सर्राफा व्यापारी भी खोखला हो जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार कहते है कि व्यवस्था में इंस्पेक्टर राज खत्म करना चाहते है और इसलिए कांग्रेस सरकार ने जो कानून बनाए हैं उन्हें भी धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं। सर्राफा व्यापारियों का सवाल है कि जब नरेन्द्र मोदी इंस्पेक्टर राज वाले कानून को ही खत्म करना चाहते हैं तो फिर सर्राफा व्यापारियों पर सेन्ट्रल एक्साइज की तलवार क्यों लटकाई जा रही है? जो हथकंडे कांग्रेस सरकार अपनाती थी वही हथकंडे मोदी सरकार भी अपना रही है। 5 मार्च को केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड की ओर से अखबारों में सर्राफा व्यापारियों के लिए एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। इस विज्ञापन में कहा गया है कि सेन्ट्रल एक्साइज के अधिकारियों से व्यापारियों को डरना नहीं चाहिए। सरकार ने टेक्स भरने के लिए ऑनलाइन पारदर्शी सिस्टम लागू किया है। यहां तक कि किसी भी व्यापारी को सेन्ट्रल एक्साइज के दफ्तर में भी जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह विज्ञापन और नरेन्द्र मोदी का तीन मार्च को संसद में दिया गया बयान मेल नहीं खाता है। मोदी ने कहा कि हम व्यवस्था को अफसरों के भरोसे हवाले नहीं कर सकते, वहीं नरेन्द्री मोदी देश के सर्राफा व्यापारियों को सेन्ट्रल एक्साइज के जाल में फंसा रहे हैं। शायद नरेन्द्र मोदी और अरूण जेटली को यह नहीं पता कि सेन्ट्रल एक्साइज में मगरमच्छों के साथ-साथ डायनासौर भी बैठे हुए हैं।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों व्यापारी वर्ग को नरेन्द्र मोदी की सरकार तंग करने पर तुली हुई है। कांग्रेस तो बार-बार आरोप लगाती है कि मोदी सरकार व्यापारियों की सरकार है। लेकिन देखा जाए तो आज सबसे ज्याद व्यापारी वर्ग ही दुखी है। सर्राफा व्यापारियों की हड़ताल को तोडऩे के लिए सरकार ने एक और हथकंडा अपनाया है। सरकार ने कहा है कि टैक्स की सीमा 6 करोड़ से बढ़ाकर 12 करोड़ रुपए की जा रही है यानि जो सर्राफा व्यापारी 12 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार करता है उसे ही सेन्ट्रल एक्साइज टैक्स चुकाना होगा। यह घोषणा इसीलिए की गई है ताकि 12 करोड़ से कम का कारोबार करने वाले सर्राफा व्यापारी हड़ताल से अलग हो जाएं। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि एक बार सेन्ट्रल एक्साइज का टैक्स लागू होने के बाद दो-चार करोड़ वाले व्यापारी की दुकान पर भी सेन्ट्रल एक्साइज के अधिकारी जांच पड़ताल के लिए आ सकते हैं और जब सेन्ट्रल एक्साइज के अधिकारी दुकान में आए तो फिर खाली हाथ नहीं लौटेंगे।
 (एस.पी. मित्तल)  (05-03-2016)
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