Wednesday 30 March 2016

रोहित के लिए दिल्ली में फिर निकला जुलूस। पर नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों और डॉ. नारंग की हत्या पर कुछ नहीं होता।


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30 मार्च को एक बार फिर देश की राजधानी दिल्ली में छात्रों ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के मृतक छात्र रोहित वेमुला के समर्थन में जुलूस निकाला। 30 मार्च को ही छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में सात से भी ज्यादा जवान शहीद हो गए। रोहित वेमूला के आत्महत्या के प्ररकण में पहले भी दिल्ली में धरना प्रदर्शन हो चुके हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रोहित का मामला अब राजनीति का शिकार हो गया है। जो लोग रोहित के मामले को लेकर जुलूस और धरना प्रदर्शन करते हैं। उनकी मंशा रोहित के परिजन को न्याय दिलवाने के बजाए हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से लेकर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी हटवाने में है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रोहित वेमुला के परिजन को न्याय मिलना चाहिए। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या दूसरे मुद्दों पर इतनी जागरुकता दिखाई जाती है? अभी हाल ही में दिल्ली में डॉ. नारंग को छह युवकों ने पीट-पीट कर मार डाला। डॉ. नारंग की हत्या और 30 मार्च को नक्सली हमले में शहीद हुए सात जवानों का मामला भी ऐसा है, जिसमें तीखी प्रतिक्रिया होनी चाहिए। इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि मीडिया में रोहित के समर्थन में निकले जुलूस की तो चर्चा होती है, लेकिन डॉ. नारंग की हत्या के मामले में चुप्पी साधी जाती है। जबकि हमारे जवानों के शहीद होने पर तो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं होती है। हमारे जवान नक्सली हमले के साथ-साथ आतंकी हमलों में भी आए दिन शहीद होते है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि आपराधिक घटना पर भी खुले आम राजनीति होती है। जो जवान देश की रक्षा की खातिर शहीद हो जाता है उसकी पीड़ा उसके परिजनों से पूछी जा सकती है। हमारा जवान देश की सीमा पर शहीद हो रहा है, इसलिए तो देश में सुरक्षित तौर पर जुलूस और धरना प्रदर्शन हो पाते हैं। यदि हमारा देश का जवान शहीद न हो तो फिर जंतर-मंतर और दूसरे स्थानों पर धरना प्रदर्शन भी नहीं हो सकते हैं। 
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(एस.पी. मित्तल)  (30-03-2016)
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