Thursday 3 March 2016

तो आखिर कैसे चलेगी संसद।



न राहुल माने और न मोदी झुके।
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3 मार्च को जिन लोगों ने टीवी चैनलों पर पीएम नरेन्द्र मोदी का लोकसभा में संबोधन सुना, उन्होंने देखा होाग कि मोदी ने किस कटाक्ष के अंदाज में राहुल गांधी के सवालों का जवाब दिया। इससे एक दिन पहले दो मार्च को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राहुल गांधी ने सरकार पर जमकर हमला बोला था। जिस अंदाज में राहुल और नरेन्द्र मोदी ने अपनी बात रखी उससे साफ लग रहा है कि संसद का बजट सत्र भी चलना मुश्किल है। पूर्व में वर्षाकालीन और शीतकालीन सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। बजट सत्र से पहले स्वयं मोदी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी और सत्र को शांतिपूर्ण तरीके से चलाने का आग्रह किया था। तब यह उम्मीद थी कि मोदी ने जो सकारात्मक पहल की है। उसका कुछ असर कांग्रेस और विपक्षी दलों पर होगा। लेकिन दो और तीन मार्च को जिस तरह से राहुल और मोदी आमने-सामने हुए उसे देखकर नहीं लगता कि बजट सत्र शांतिपूर्ण होगा। राहुल गांधी के भाषण का निष्कर्ष निकाला जाए तो मोदी सरकार पूरी तरह विफल है और चुनाव में जो वायदे किए उसमें से एक भी पूरा नहीं हो रहा। वहीं मोदी के भाषण का निष्कर्ष निकाला जाए तो वायदे पूरे इसलिए नहीं हो रहे, क्योंकि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है। जीएसटी बिल हो या नदियों को जोडऩे का बिल सभी हंगामे की वजह से लटके पड़े हैं। दोनों के बीच जो तल्खी नजर आई, उससे प्रतीत होता है कि जो हाल वर्षाकालीन और शीतकालीन सत्र का हुआ, वहीं हाल बजट सत्र का भी होगा। पहले के दो सत्रों की तरह बजट सत्र में भी जीएसटी जैसा महत्त्वपूर्ण बिल पास नहीं हो सकेगा। 
2 मार्च को राहुल गांधी ने सरकार के मेक इन इंडिया के नारे का मजाक उड़ाते हुए बब्बर शेर की बात कही, वहीं मोदी ने कहा कि हीनभावना से ग्रसित होने के कारण संसद में बेसिर-पैर की बाते कहीं जा रही हंै। दो मार्च को राहुल गांधी ने हर बार नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर हमला किया, लेकिन 3 मार्च को मोदी ने न तो सोनिया गांधी न राहुल गांधी और न कांग्रेस का नाम लिया। लेकिन राहुल के हर सवाल और कटाक्ष का जोरदार जवाब दिया। उन्होंने कहा कि संसद को इसलिए नहीं चलने दिया जा रहा है कि विपक्ष के युवा और समझदार सांसद न बोल पाए। संसद चलेगी तो विपक्ष के युवा सांसद प्रभावी तरीके से अपनी बात रखेंगे, तब नेतृत्व करने वालों की समझ की पोल खुल जाएगी। यह बात मोदी ने इसलिए कही, क्योंकि राहुल ने जब अपने भाषण में नरेगा और अन्य मुद्दों पर बोलने में गलतियां की तो राहुल ने कहा था कि उन्हें कुछ नहीं आता। हम गलतियां करते रहते हैं, समझदार तो सिर्फ नरेन्द्र मोदी और आरएसएस है। अब सवाल उठता है कि जब संसद में इतनी तल्खी है तो देश के विकास की योजनाओं का क्या होगा। इस तल्खी का खामियाजा देश की जनता को नहीं भुगतना होगा? किसी भी देश का विकास और खुशहाली के लिए लोकतंत्र को सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन भारत में लोकतंत्र से निकले राजनीतिक दल अपने अपने अहम और स्वार्थ में उझले हैं। 

(एस.पी. मित्तल)  (03-03-2016)
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