Thursday 31 March 2016

गरीब नवाज की देग के चढ़ावे को नजर नहीं लगे। ठेके के लिए खादिमों ने ही बनाया पूल।


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अजमेर स्थित सांसर प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में दो देग लगी हुई हैं। इन दोनों देगों में रात के समय तबर्रुक (चावल आदि) पकाया जाता है। जब देग खाली होती है तो इसमें जायरीन अपनी अकीदत के अनुरूप चढ़ावा चढ़ाते हैं। इस चढ़ावे का खादिमों की संस्था अंजुमन के द्वारा ठेका दिया जाता है। चूंकि इस बार ख्वाजा साहब का उर्स का झंडा चांद दिखने पर पांच या छह अप्रैल को चढ़ेगा। इसलिए 4 अप्रैल से आगामी 15 दिनों के लिए देग के चढ़ावे का ठेका दिया जा रहा है। गत वर्ष इन 15 दिनों के लिए 3 करोड़ 36 लाख रुपए में ठेका छूटा था। यानि जिन खादिमों के समूह ने 15 दिनों का ठेका लिया, वे अंजुमन को 3 करोड़ 36 लाख रुपए देंगे औन इन 15 दिनों की अवधि में जो भी चढ़ावा आएगा उस पर खादिम समूह का हक होगा। दरगाह की परंपरा के अनुसार देग के चढ़ावे का ठेका दरगाह के खादिम ही ले सकते हंै। इस बार भी उर्स की अवधि के लिए देग के चढ़ावे की बोली लगाई गई तो खादिम समुदाय के लोगों ने ही पूल बना लिया। जिस प्रकार सरकारी निर्माण कार्यों में ठेकेदार पूल बनाकर संबंधित विभाग को अपनी शर्तों पर ठेका देने के लिए विवश करते हैं, उसी प्रकार खादिम समुदाय ने भी पूल बनाकर उर्स की अवधि के लिए मात्र एक करोड़ 50 लाख रुपए की बोली लगाई। यानि जो ठेका गत वर्ष 3 करोड़ 36 लाख रुपए था, उसे इस वर्ष मात्र 1 करोड़ 50 लाख रुपए में देने के लिए विवश किया। खादिमों की संस्था अंजुमन सैय्यद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने देग के चढ़ावे पर पूल बनाए जाने पर अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि यदि 3 करोड़ 36 लाख रुपए से ज्यादा का प्रस्ताव नहीं आता है तो फिर अंजुमन ही देग के चढ़ावे को एकत्रित करेगी। उन्होंने बताया कि चढ़ावे से प्राप्त राशि को खादिम समुदाय के सामाजिक कार्य पर ही खर्च किया जाता है। 
अकीदत का सवाल:
सब जानते हैं कि ख्वाजा साहब को गरीब नवाज भी कहा जाता है, यानि गरीबों को नवाजने वाले। ख्वाजा साहब की दरगाह में जो जायरीन आता है, उसकी अकीदत पवित्र मजार से जुड़ी होती है। यही वजह है कि प्रतिवर्ष यहां आने वाले जायरीन की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। जायरीन अपनी अकीदत और आर्थिक स्थिति के अनुरूप देग में चढ़ावा डालता है। जो लोग दरगाह में जियारत के लिए आए हैं, उन्हें पता है कि देग में नकद राशि के अलावा सोने, चांदी के आभूषण भी पड़े होते हैं। गरीब जायरीन चावल के कट्टे, गुड़, चीनी आदि खाद्य सामग्री भी देग के डालते हैं। ऐसे में देग के चढ़ावे का एक धार्मिक महत्त्व भी होता है। यह सही है कि अंजुमन प्राप्त राशि को सामाजिक कार्यों के साथ-साथ जायरीन की सुविधा के लिए भी खर्च करती र्है। ऐसे में दरगाह से जुड़े सभी प्रतिनिधियों का यह दायित्व है कि वे जायरीन की अकीदत का भी ख्याल रखें। 
चढ़ावे पर है तीन का हक:
ख्वाजा साहब की दरगाह में आने वाले चढ़ावे पर मुख्यत: तीन संस्थाओं का हक है। खादिम समुदाय की दो संस्थाएं बनी हुई हैं। इसके साथ ही आंतरिक व्यवस्थाओं के लिए केन्द्र सरकार ने दरगाह कमेटी का गठन कर रखा है। इसी प्रकार धार्मिक रस्मों के लिए दरगाह के दीवान का भी हक है। वर्तमान दरगाह दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन ने दरगाह में आने वाले चढ़ावे पर अपना हक भी जताया था। इसके लिए आबेदीन ने जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जंग की। अब गत वर्ष खादिम समुदाय और दीवान ने अदालत के बाहर समझौता कर लिया है। इस समझौते के मुताबिक खादिम समुदाय प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपए की राशि दीवान आबेदीन को देगा। इसके साथ ही दीवान आबेदीन दरगाह में आने वाले चढ़ावे पर अपना हक नहीं जताएंगे। दरगाह कमेटी ने भी दरगाह के अंदर दान पात्र लगा रखे हैं, इन दान पात्रों में भी करोड़ों रुपए की राशि आती है। 

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(एस.पी. मित्तल)  (31-03-2016)
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