Saturday 12 March 2016

राजस्थान पत्रिका की खबर पर वसुंधरा सरकार को राज्यपाल के सामने देनी पड़ी सफाई।



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इसे राजस्थान पत्रिका का प्रभाव और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का रूखा मिजाज ही कहा जाएगा कि 12 मार्च को वसुंधरा राजे की सरकार को राज्यपाल के सामने उपस्थित होकर अपनी सफाई देनी पड़ी। हुआ यूं कि 12 मार्च को पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर राज्यपाल सही या मुख्यमंत्री के शीर्षक से एक खबर प्रकाशित हुई। खबर में कहा गया कि बजट सत्र से पहले राज्यपाल ने सरकार की उपलब्धियों पर जो भाषण पढ़ा उसमें और मुख्यमंत्री के बजट भाषण में विरोधाभास है। खबर में विरोधाभास के आंकड़े भी दिए गए। खबर से साफ था कि वसुंधरा सरकार कटघरे में है। इस खबर पर सख्त मिजाज राज्यपाल कोई कार्रवाई करते उससे पहले ही वसुंधरा राजे के सबसे विश्वासपात्र मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ राजभवन पहुंच गए। राज्यपाल को बताया गया कि आपका भाषण 2 माह पहले तैयार हुआ और मुख्यमंत्री के भाषण में आंकड़े ताजा हैं। इसीलिए विरोधाभास नजर आ रहा है। सूत्रों की माने तो राठौड़ के इस जवाब से राज्यपाल संतुष्ट नहीं हुए। इस बात का पता इससे भी चलता है कि दोपहर बाद जब राज्यपाल कोटा पहुंचे तो पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि इस मामले में सरकार से रिपोर्ट मांगी जाएगी। सूत्रों के अनुसार अभिभाषण में संस्कृत का जो श्लोक राज्यपाल ने पढ़ा वह भी उपयुक्त नहीं था। वसुंधरा राजे के विरोधी भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी का कहना है कि यह श्लोक तो शोक के समय पढ़ा जाता है। राज्यपाल इस श्लोक को लेकर भी सरकार के रवैये से नाराज हैं।
डोटासरा का गंभीर आरोप:
राजस्थान पत्रिका की सरकार विरोधी खबरों से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कितनी नाराज है इस बात का पता विधानसभा में कांग्रेस के सचेतक गोविन्द सिंह डोटासरा के बयान से लगता है। डोटासरा ने 11 मार्च को विधानसभा में कहा कि वसुंधरा सरकार से क्या उम्मीद की जाए? यह सरकार तो मीडिया की आवाज दबाने में लगी हुई है। राजस्थान पत्रिका सरकार की खामियों को उजागर करता है इसीलिए सरकार के विज्ञापन नहीं दिए जा रहे हैं। डोटासरा का यह बयान 12 मार्च को ही पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर छपा है। चूंकि यह बयान स्वयं पत्रिका ने छापा है इसीलिए मामला बेहद गंभीर है। यदि कोई राज्य सरकार किसी अखबार में विज्ञापनों पर पाबंदी लगाती है तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। कोई सरकार यह ना समझे कि विज्ञापन का पैसा अपनी जेब से दे रही है। विज्ञापन का भुगतान सरकार जनता के कोष से ही करती है और फिर पत्रिका जैसा अखबार तो अपने आप में समर्थ है। यह सही है कि वसुंधरा राजे की सरकार प्रदेश के छोटे अखबारों के भी खिलाफ है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार साप्ताहिक और पाक्षिक अखबारों को जो विज्ञापन दिए थे। उनका भुगतान 2 वर्ष गुजर जाने के बाद भी वसुंधरा सरकार ने नहीं किया है। सवाल उठता है जब यह सरकार राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबार को ही विज्ञापन नहीं दे रही है तो फिर साप्ताहिक, पाक्षिक अखबारों की बिसात ही क्या है?
(एस.पी. मित्तल)  (12-03-2016)
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