Thursday 3 March 2016

चाचा होते तो खुश होते



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चाचा यानि मेरे स्वर्गीय पिता श्रीकृष्ण गोपाल जी गुप्ता। यानि गोपाल भैय्या। चाचा का निधन 3 मार्च 1991 को हुआ इसलिए 3 मार्च 2016 को चाचा की 25वीं पुण्यतिथि है। मैं चाचा के बारे में पहले भी लिख चुका हंू। अजमेर के पुराने और ट्रेड यूनियनों से जुड़े प्रतिनिधि गोपाल भैय्या को जानते हंै। विपरित परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानी। पैर में चोट लगने के बाद रेलवे की नौकरी छोड़ी तो राजनीति में सक्रियता दिखाई और अजमेर के पाल बीसला क्षेत्र से दो वार्ड नगर परिषद का चुनाव जीता। स्वतंत्रता संग्राम में भी भूमिका निभाई। यदि चाचा पर लिखने लगूं तो यह ब्लॉग लम्बा हो जाएगा। मुझे याद है, जब मैंने एक बड़े दैनिक समाचार पत्र में काम करने का प्रस्ताव रखा था, तो चाचा ने बड़े गर्व से कहा कि मैं अखबार का सम्पादक हूं और मेरा बेटा दूसरे के अखबार में जाकर नौकरी करें, यह अच्छी बात नहीं होगी। उस समय भभक पाक्षिक का प्रकाशन चाचा ही करते थे। यानि उनके अपने सिद्धांत थे। इसलिए मैंने इस ब्लॉग का शीर्षक लिखा है कि चाचा होते तो खुश होते। आज सोशल मीडिया के माध्यम से मेरी जो पहचान बनी है, उसे देखकर सबसे ज्यादा चाचा ही खुश होते। सोशल मीडिया पर मैं और मेरे लाखों पाठक व चाहने वाले हैं। 
युवा पीढ़ी के लोग चाचा की इस घटना से प्रेरणा ले सकते हैं। बात उस समय की है, जब मियां अलीमुद्दीन साहब अजमेर के रसद अधिकारी थे। घटना लिखने से पहले यह बताना चाहता हंू कि मरहूम अलीमुद्दीन साहब सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह वर्तमान दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन के पिता थे, उस समय सभी परिवारों को राशन की दुकानों से गेंहू, चीनी, केरोसिन आदि सामग्री मिलती थी। राशन की सामग्री की काला बाजारी को लेकर चाचा ने कई बार भभक अखबार में रसद विभाग के खिलाफ लिखा, लेकिन सब जानते थे कि खुद रसद अधिकारी अलीमुद्दीन साहब ईमानदार थे। बिगड़ी व्यवस्था में एक ईमानदार अधिकारी जो कुछ भी कर सकता था। वह अलीमुद्दीन साहब ने किया। इन्हीं दिनों अलीमुद्दीन साहब ने राशन के गेंहू से भरे दो ट्रक पकड़े। यह गेंहू काला बाजार में बिकने जा रहा था। उस समय दो ट्रक गेंहू को पकडऩा बहुत बड़ी बात थी। इसके पीछे पूरा माफिया काम कर रहा था। जब दो ट्रक गेंहू के जप्ती के कागजात तैयार किए तो अलीमुद्दीन साहब ने चाचा को ही गवाह बनाया। इस पर चाचा ने यह पूछा कि मैं तो रसद विभाग के खिलाफ लिखता हंू तो फिर आपने मुझे गवाह क्यों बनाया? इस पर अलीमुद्दीन साहब ने कहा गोपाल भैय्या जिस किसी को भी गवाह बनाऊंगा, वह बाद में खरीदा जा सकता है और मुझे पता है कि गोपाल भैय्या कभी बिक नहीं सकते। अदालत में काला बाजारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही हो, इसलिए इस मामले में आपको गवाह बनाया गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय स्वस्थ आलोचना करने वाले पत्रकारों का कितना सम्मान था। आज तो यदि किसी नेता अथवा अधिकारी की सच्चाई भी लिख दी जाए, तो वह नाराज हो जाता है। चाचा की 25वीं पुण्यतिथि पर में ईश्वर से यही प्रार्थना करना चाहता हंू कि मुझे निडरता के साथ ईमानदारी के मार्ग पर चलते रहने की शक्ति प्रदान करे। 

(एस.पी. मित्तल)  (03-03-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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