Monday 16 April 2018

राजस्थान में सत्ता की गोद से नहीं उतर रहा भाजपा संगठन।

राजस्थान में सत्ता की गोद से नहीं उतर रहा भाजपा संगठन। 
अब तो संगठन महामंत्री भी मंत्रिमंडल की बैठकों में उपस्थित रहने लगे हैं।
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लोकसभा के दो उपचुनाव में सभी 17 विधानसभा सीटों पर मिली करारी हार के बाद यह माना जा रहा था कि राजस्थान में भाजपा संगठन में बदलाव होगा। चन्द्रशेखर के संगठन महामंत्री बनने पर भी ऐसी ही चर्चा हुई। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान में भाजपा संगठन सत्ता की गोद से उतर ही नहीं रहा है। सीएम वसुंधरा राजे की सिफारिश से प्रदेशाध्यक्ष बने अशोक परनामी आज भी अपने पद पर कायम हैं। परनामी ने अध्यक्ष की हैसियत से वही किया जो सीएम ने कहा। परनामी की सबसे बड़ी सफलता यही है कि उन्होंने सीएम का भरोसा जीत रखा है। चन्द्रशेखर जब यूपी से राजस्थान आए तो यही माना गया कि अब संगठन में बदलाव होगा। पूर्व में संगठन की जो बैठकें सीएम के बिना नहीं होती थीं वो बैठकों  में चन्द्रशेखर की उपस्थिति होने लगी। आम कार्यकर्ता को लगाने लगा कि अब कोई सुनने वाला आ गया है। लेकिन इसे सीएम राजे की कार्यकुशलता ही कहा जाएगा कि अब संगठन के महामंत्री चन्द्रशेखर खुद ही मंत्रिमंडल की बैठकों में उपस्थित रहने लगे हैं। तीन दिन पहले ही मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक में सीएम के साथ चन्द्रशेखर भी बैठे। यानि बदली हुई परिस्थितियों में भी सत्ता और संगठन में कोई दूरी नहीं है। सीएम राजे के दिल्ली में पहले ही नितिन गडकरी से लेकर पीयूष गोेयल तक मददगार हैं और संगठन महासचिव भी शामिल हो गए हैं। यही वजह है कि उपचुनाव में मिली हार को जयपुर से लेकर दिल्ली तक गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। चन्द्रशेखर नेताओं की बदौलत वसुंधरा राजे फिलहाल यह निर्णय करवा लिया कि नवम्बर में होने वाला विधानसभा का चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाए। 
कांग्रेस खुशः
राजस्थान में भाजपा नेतृत्व में परिवर्तन नहीं होने से कांगे्रस बेहद खुश है। कांग्रेस का मानना है कि यदि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ती है तो कांग्रेस की जीत आसान होगी। लोकसभा उपचुनाव में सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है। वसुंधरा राजे के मुकाबले कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पालट की सभाओं में ज्यादा भीड़ रहती है। राजे को सभाओं में काले झंडे दिखाने और विरोध प्रदर्शन का भी डर रहता है। लेकिन पायलट को ऐसा कोई डर नहीं है। अशोक गहलोत का मामला भी दिल्ली पहुंच गया है, इसलिए पायलट राजनीति की पटरी पर तेजी से दौड़ रहे हैं।

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