Thursday 26 April 2018

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन तो अजमेर सहित राजस्थान भर में नहीं हो रहा स्कूली वाहनों पर।

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन तो अजमेर सहित राजस्थान भर में नहीं हो रहा स्कूली वाहनों पर। कुशीनगर में 13 और दिल्ली में एक मासूम की दर्दनाक मौत।
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26 अप्रैल को यूपी के कुशीनगर में एक स्कूली वाहन के ट्रेन से टकरा जाने से 13 मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। इसी प्रकार दिल्ली में स्कूल वाहन एक दूध के टेंकर से टकरा गया, जिससे एक बच्चे की मौत हो गई। कुशीनगर के हादसे पर तो प्रधानमंत्री  ने भी दुःख जताया है। स्कूल के बच्चों के काम आने वाले वाहनों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइड लाइन जारी कर रखी है। इसमें वाहन का रंग पीला, वाहन पर स्कूल का नाम, फोन नम्बर व चालक का नाम फोन नम्बर, आग बुझाने का उपकरण, चिकित्सा बाॅक्स, आपात कालीन खिड़की दरवाजे पर लाॅक  आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही कोई भी स्कूली वाहन 40 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ज्यादा न चले। लेकिन सब जानते है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन की पालना अजमेर सहित पूरे राजस्थान में नहीं होती है। अजमेर के अधिकांश बड़े स्कूलों ने तो अपने वाहन ही हटा दिए हैं। ऐसे में बच्चे वैन, आॅटो आदि वाहनों से ही सफर करते हैं। इसमें अधिकांश वैन ही है। कई वैन तो गैस किट से संचालित हो रही है। एक वैन में दो स्कूलों के बच्चों को भरा जाता है। वैन और आॅटो चालक का मकसद अधिक से अधिक धन कमाना होता है। चालक को बच्चों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होता। अजमेर में तो टेªफिक पुलिस ने वाहनों को टोकन नम्बर देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। अधिकांश वाहनों में सुरक्षा के कोई उपाय नहीं है। गंभीर बात तो यह है कि टोकन लेने के साथ जिस चालक की फोटो, ड्राइविंग लाइसेंस आदि दस्तावेज दिए, वह ड्राइवर वर्तमान में वाहन चला ही नहीं रहा है। लेकिन एक बार टोकन देने के बाद कोई जांच पड़ताल नहीं होती।
अभिभावक भी खामोशः
व्यस्त जिन्दगी की वजह से अभिभावक भी खामोश हैं। कोई भी अभिभावक इस मुद्दे पर जागरुकता नहीं दिखाता है। जबकि वाहन चालक मनमाना शुल्क वसूलते हैं। स्कूल के संचालक भी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। सवाल उठता है कि जब फीस के नाम पर मोटी राशि ली जाती है तो बच्चों का ख्याल क्यों नहीं रखा जाता? यातायात विभाग के अधिकारी भी पुलिस की तरह अपने स्वार्थ पूरे करने में लगे रहते हैं।

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