Friday 20 April 2018

तो क्या भारत की न्यायपालिका भी राजनीति की चपेट में आ गई है?

तो क्या भारत की न्यायपालिका भी राजनीति की चपेट में आ गई है?
सीजेआई के खिलाफ महाअभियोग का नोटिस।
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पड़ौसी देश पाकिस्तान में ऐसे कई मौके आए हैं जब न्यायपालिका और सरकार आमने-सामने हुए हैं। दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर गंभीर आरोप भी लगाए। लेकिन भारत में यह पहला अवसर है जब विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की निष्पक्षता और ईमानदारी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। बीस अप्रैल को राज्य सभा के 71 सांसदों के हस्ताक्षर वाला एक नोटिस सभापति वेंकैय्या नायडू को सौंपा गया है। इस नोटिस में सीजेआई के खिलाफ महाअभियोग चलाने की मांग की गई है। नोटिस में पांच कारण गिनाते हुए सीजेआई पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है। भारत के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब सीधे तौर पर सीजेआई पर विपक्षी दलों ने ऐसे आरोप लगाए हैं। जो पांच कारण गिनाए गए हैं उनमें से प्रमुख गत 12 जनवरी को चार जजों द्वारा सीजेआई की कार्यप्रणाली पर की गई आपत्ति है। कांग्रेस मुस्लिम लीग, सपा, बसपा और वामपंथी दलों को लगता है कि सीजेआई की वजह से भारत का लोकतंत्र खतरे में है। सीजेआई न केवल पक्षपात पूर्ण प्रशासनिक निर्णय ले रहे हैं बल्कि उनके स्वयं की ईमानदारी और निष्पक्षता पर भी सवाल हैं। उड़ीसा में जमीन आवंटन का मामला हो या फिर प्रसाद एज्युकेशन केस की सुनवाई का मामला। सभी में सीजेआई पर अंगुली उठी है। इस नोटिस के बाद कांग्रेस के कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने एक प्रेस वार्ता में यह भी कहा कि वे ऐसे आरोप लगाकर खुश नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र को बचाने के लिए मजबूरी में महाअभियोग का नोटिस दिया गया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सभापति नायडू इस नोटिस को स्वीकार कर राज्यसभा में महाअभियोग पर चर्चा करवाएंगे। 
राजनीति की चपेट मेंः
सीजेआई पर महाअभियोग चलता है यह तो अभी गर्भ में हैं, लेकिन इतना जरूर है कि भारत की न्यायपालिका भी अब राजनीति की चपेट में आ गई है। पूरी दुनिया में भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की प्रशंसा की जाती  है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दीपक मिश्रा के सीजेआई रहते हुए प्रशासनिक निर्णय निष्पक्ष नहीं हो रहे हैं। इस मामले में चार जजों द्वारा लगाए गए आरोप भी गंभीर हैं। माना जा रहा है कि 12 जनवरी को सीजेआई के खिलाफ जो मुहिम शुरू की गई थी, उसी का हिस्सा 20 अप्रैल को महाअभियोग का नोटिस भी है। यदि न्यायपालिका भी राजनीतिक की चपेट में आ रही है तो यह भारत के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा। जिस तरह से सीजेआई पर आरोप लगाए गए हैं उससे तो ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में निर्णय भी पारदर्शी तरीके से नहीं हो रहे हैं।

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