Wednesday 11 April 2018

मुद्दई भी खुद, हाकिम भी खुद।

मुद्दई भी खुद, हाकिम भी खुद।
एसपी मित्तल के दो ब्लाॅगों को राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने स्वयं का विशेषाधिकार हनन माना।
अपने कक्ष में तलब कर किया दुव्र्यवहार।
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मेरे ब्लाॅग लेखन को बंद करवाने के लिए राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के प्रयास विफल हो जाने के बाद अब राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने मेरे दो ब्लाॅगों को स्वयं का विशेषाधिकार हनन मानते हुए नोटिस जारी किए। विधानसभा के सचिव पृथ्वीराज द्वारा जारी नोटिस पर मुझे गत 20 मार्च को मेघवाल ने अपने कक्ष में तलब किया। हालांकि 8 फरवरी और 19 फरवरी को लिखे दोनों ब्लाॅग विधानसभा में प्रतिपक्ष के सदस्यों के बयानों पर आधारित थे। ऐसे बयान सदस्यों के न्यूज चैनलों पर भी प्रसारित हुए। यहां तक कि कुछ अंश समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए। इतना ही नहीं कई टिप्पणियां तो विधानसभा की कार्यवाही में भी दर्ज है, लेकिन इसके बाद भी मेघवाल ने अपने कक्ष में मेरे साथ न केवल दुव्र्यवहार किया, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष की गरिमा से परे जाकर असंसदीय शब्दों का प्रयोग किया। मुझे बचाव का कोई मौका ही नहीं दिया। यहां तक की बाद में मुझे कक्ष से बाहर चले जाने का आदेश भी दे दिया। 
राज्यपाल को शिकायतः
20 मार्च को मेघवाल ने मेरे साथ जो कुछ भी किया उसे उचित मंच और उचित समय पर प्रस्तुत किया जाएगा। फिलहाल मैंने अपने मौलिक अधिकारों के संदर्भ में एक पत्र राज्यपाल महामहिम आदरणीय कल्याण सिंह जी को लिखा है। चूंकि राज्यपाल ही किसी भी प्रदेश में संविधान के संरक्षक होते हैं, इसलिए मैंने राज्यपाल से यह आग्रह किया था कि भविष्य में जब कभी भी मेरे प्रकरण में विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में सुनवाई हो तो वीडियोग्राफी करवाई जाए।
मिथ्यापूर्ण कार्यवाही वृतांतः
20 मार्च को मेघवाल के कक्ष में जो कुछ भी हुआ उस कार्यवाही वृतान्त की मांग मैंने विधानसभा के सचिव से की। सचिव ने मुझे जो कार्यवाही वृतांत भिजवाया वह एक तरफा है। इस वृतांत में मेघवाल के उन कथनों को शामिल नहीं किया गया जो उन्होंने अध्यक्ष के कक्ष में कुर्सी पर बैठकर कहे थे। माना जाता है कि विधानसभा अध्यक्ष का कक्ष भी लोकतंत्र का मंदिर होता है और इस मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने की जिम्मेदारी अध्यक्ष की ही होती है। लेकिन 20 मार्च की कार्यवाही विवरण में वो ही रिपोर्टिंग हुई जो मेघवाल ने चाही, इसलिए मैंने इस कार्यवाही विवरण पर भी तत्काल अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हुए सचिव से आग्रह किया कि 9 अप्रैल को होने वाली दूसरी सुनवाई के समय विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष की वीडियोग्राफी करवाई जावे।
9 अप्रैल को नहीं मिले मेघवालः
हालांकि विधानसभा के सचिव ने मुझे नोटिस देकर सूचित किया था कि मैं 9 अप्रैल को प्रातः 11बजे अध्यक्ष के कक्ष में उपस्थित होऊं। 9 अप्रैल को जब मैं अपने पिता सामान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आदरणीय एसके सक्सेना के साथ पहुंचा तो सचिव पृथ्वीराज ने बताया कि अध्यक्ष आज उपलब नहीं है। शायद वे जयपुर से बाहर चले गए हैं। लेकिन मुझे (सचिव) ये आदेश दिया गया कि मैं कार्यवाही को आगे बढ़ाऊं। बहुत ही सौहार्द और शांतिपूर्ण माहौल में हमने अपना जवाब सचिव महोदय को सौंप दिया।
मुद्दई भी खुद, हाकिम भी खुदः
मुझे जो विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया गया है उसमें शिकायतकर्ता के तौर पर मेघवाल स्वयं हैं। अब इसी प्रकरण में मेघवाल स्वयं ही निर्णय कर रहे हैं। विधानसभा की नियमावली के नियम 157 में जो नोटिस दिया गया है, उस नियम के प्रावधानों की भी पालना नहीं की गई है।
विचारों की अभिव्यक्ति के समर्थक रहे हैं मेघवालः
कैलाश मेघवाल इस समय भीलवाड़ा के शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विधायक हैं। मेघवाल का लम्बा राजनीतिक जीवन रहा है। कई चुनाव हारें तो कई जीते। राजनीति में रहते हुए मेघवाल हमेशा विचारों की अभिव्यक्ति के प्रबल समर्थक रहें। इसे मेघवाल के विचारों की अभिव्यक्ति ही कहा जाएगा कि वर्ष 2003 से 2008 तक पहली बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनी तो मेघवाल ने अनेक मौकों पर सार्वजनिक विरोध किया। सरकार के अंतिम कार्यकाल में तो मेघवाल ने 20 हजार करोड़ रुपए के घोटाले तक के आरोप लगाए। उदयपुर के मीरा गल्र्स काॅलेज के प्रकरण में भी मेघवाल के विचारों की प्रबल अभिव्यक्ति देखने को मिली। इतना ही नहीं वर्ष 1984 में जालौर संसदीय क्षेत्र से तबके केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार बूटा सिंह को हराकर तो मेघवाल ने देश की राजनीति में धमका कर दिया था। 

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